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________________ भेंट कर दे । गुरु-पूर्णिमा का अर्थ यह है कि गुरु का चांद पूर्णिमा की तरह खिला हुआ है और व्यक्ति को अपने आपको उसी तरह पूर्ण चन्द्रमा बनना है। इसके लिए डूबना जरूरी है। प्रायो और डूबो । डूबो और सिर्फ डूबो। इतने गहरे....आखिरी सांस तक, शून्य तक । खुद को गुरु को समर्पित करो ताकि गुरु अपनी ज्योति से आपके अन्तर्मन को ज्योतिर्मय कर सके। आज पूणिमा है और इससे पहले अमावस्या थी। पूर्णिमा और अमावस्या के बीच में पन्द्रह दिन का फासला होता है। लेकिन मैं जिस पूर्णिमा और अमावस्या की बात कर रहा हूँ, उसके मध्य एकदो कदम का ही फासला है। अमावस्या का अर्थ है अहंकार का अन्धकार । और इस अहंकार को छोड़ दो तो पूर्णिमा आपका इन्तजार करती मिलेगी । जरूरत सिर्फ समर्पण की है । शुक्ल की ओर, समर्पण की ओर दो कदम बढ़ाने की है। इधर अमावस्या, उधर पूर्णिमा । मात्र एक कदम का फासला।। जब तक आदमी अहंकार का दामन नहीं छोड़ेगा, अंधेरे में भटकता रहेगा और जहां इससे अलग हुआ, खुद को समर्पित किया, उसके जीवन में पूर्णिमा प्रवेश कर जायेगी। थोड़ी ही सही, पर प्रवेश कर जाएगी। दूज ही सही, चांद का कुछ अनुपात तो हाथ लग ही जाएगा। जीवन के अध्यात्म में, क्षितिज में अमावस और पूनम में फासले नहीं हैं, आपको एक कदम बढ़ाना है । अब महत्वपूर्ण बात यह है कि आपका कदम किस ओर बढ़ता है। __ मनुष्य के पांच फीट लम्बे शरीर में पूर्णिमा और अमावस्या दोनों समाई हुई है । बाहर तो पूर्णिमा और अमावस्या इसलिए बारबार आती है ताकि मनुष्य अपने भीतर की पूर्णिमा और अमावस्या को समझ सके। ( ४३ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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