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अगर जीवन के कदम सार्थक में बढ़ जायें, दृष्टि ऊर्ध्वमुखी हो जाये, तो तुम जीवन में सत्य को तो आत्मसात् करोगे ही, आनन्द के आकाश से भी भर उठोगे।
अपने अांचल को फैलायो, सौगातें खुद-ब-खुद अांचल भरेंगी। मंजिलें भले ही दूर हों, रास्ते जीवन के भले ही मुश्किल हों, कांटों से गुजरकर भी तुम फूलों तक पहुँच सकते हो। तारों भरी रात न भी मिले, तो परवाह नहीं, तुम स्वयं दीप बनो, दिल का दीप जलायो । 'अप्प दीवो भव' । खुद को रोशन करो। अन्धकार भले ही कितना भी क्यों न हो, जहां भी, जब किरण प्रगट होगी, अन्धकार को चीर डालेगी। अन्धकार पर हावी हो जाएगी। क्रांति हो प्रकाश की, विकास की।
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