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दोनों साथ चल रहे हैं। आप पाप से नहीं हट पाते तो सामायिकप्रतिक्रमण की सार्थकताएं कैसे प्रात्मासात् हो पाएंगी। एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं। पाप करो तो पाप ही, और पुण्य करना है तो इन्तजार न करो, पुण्य कर डालो ।
आप धर्म करते हैं, अच्छी बात है, लेकिन कभी सोचा है ? धर्म तो करते हो एक घण्टा और क्रोध-कषाय करते हो २३ घण्टे । सामायिक का, प्रतिक्रमण का अपना विशिष्ट मूल्य है, लेकिन वह तभी मूल्यवान होगा जब अधर्म का पलड़ा हलका हो जाए और धर्म का पलड़ा भारी । धर्म का मूल्य अधर्म से होना चाहिए। हम जीवन के हर कदम पर छल करते हैं, धर्म-सभा में जाकर धार्मिक हो जाते हैं । बाहर आए, तो बिल्ली वैसी ही चूहों पर झपट रही है। हमारा धार्मिक होना, होना नहीं है, कलाना भर है । हम धर्म नहीं, धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं। धर्म के बरगद की डालियां बहुतेरों के हाथ में हैं, पर किसी को यह नहीं पता कि उस बरगद की जड़ें कहाँ हैं । सब ऊपर-ऊपर हो रहा है, राख पर लीपा-पोती की जा रही है । इसलिए मैं कहता हूँ जीवन में हर किसी को सत्य का पूरा अनुभव नहीं हो पाता, सत्य का पूरा साक्षात्कार नहीं हो पाता।
मनुष्य ने जीवन के दो रूप बना रखे हैं । हम कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं । मुख्य चेहरे पर मुखौटा लगा लेते हैं और भीतर, भीतर-ही-भीतर विस्फोट की, एक-दूसरे को पीछे पछाड़ने की तैयारी चलती रहती है । उड़ाते हैं शान्ति के कबूतर और बनाते हैं बम । बात करते हैं अहिंसा की और उद्घाटन करते हैं कसाईखाने का । जीवन के साथ यह साफ तौर पर दोहरापन है।
एक लड़का आम के बगीचे में गया। उसने देखा वहां कोई न था । वह पेड़ पर चढ़ गया और आम तोड़कर अपने झोले में भरने लगा । एकाएक वहाँ माली आ गया। उसने उसे आवाज लगाई।
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