________________
मैं यह सब इसलिए कहता हूँ क्योंकि हमारे पास जीवन ही एक ऐसी सम्पत्ति है, जिसे हम अपना कह सकते हैं । जन्म हमारी इच्छा से नहीं हुआ । मृत्यु भी हमारी इच्छाओं से परे की चीज है । एकमात्र जीवन ही हमारा है । उस पर हमारा अधिकार है । 'हम' अपनी मौलिक देन नहीं हैं । हमारा जन्म किसी और की इच्छा से हुआ है । इसे आप ईश्वर की इच्छा, कुदरत या हमारे माता-पिता के संयोग का फल कह सकते हैं । मगर, एक बात तो तय है कि हमें यह जीवन पुरस्कार के रूप में मिला है । इस पुरस्कार को परम आनन्द के साथ स्वीकार कीजिए ।
आपको जीवन का पुरस्कार भले ही किसी ने दिया हो, मगर आपको यह पुरस्कार मिला है, यह तो अटूट सत्य है । इसलिए जीवन एक महोत्सव होना चाहिए । ग्राप मन्दिरों में जाकर उत्सव करवाते हैं, महाजाप करवाते हैं । लेकिन इस जीवन से महान उत्सव दूसरा कोई नहीं है । आदमी बाहर उत्सव इसलिए करवाता है, क्योंकि उसने अपने जीवन को नर्क बना लिया है । मगर आप इसे ही अन्तिम सत्य मत मान लीजिएगा । जीवन एक उत्सव हो सकता है । उसे उत्सव बनाया जा सकता है । जीवन स्वर्ग का पर्याय हो सकता है ।
जीवन आपको मिला परमपिता का प्रसाद है । आप मन्दिर जाते हैं, प्रसाद लेते हैं । वैसे ही जीवन भी महाप्रसाद है । इस महाप्रसाद को अहोभाग के साथ स्वीकार करें। इससे महान प्रसाद दुनियां में जितनी चीजें हैं, उनका हर लेकिन जीवन ही एक मात्र ऐसा है
दूसरा कोई हो नहीं सकता । रूप में कुछ-न-कुछ मूल्य है, जिसका मूल्य केवल 'जीवित' होने से है ।
आप किसी धर्म - स्थान पर जाते हैं । है जब तक लोग वहां जाते रहें । लोगों ने
Jain Education International
वह तभी तक धर्म - स्थान जाना बन्द कर दिया तो
( ३३ )
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org