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संभले सो समझदार
घटना राजधानी की है। बीच बाजार लोगों का आवागमन जारी है। कोई आ रहा है, कोई जा रहा है। हर व्यक्ति अपनी जरूरत की चीज खरीदकर आगे बढ़ रहा है। वहीं एक कसाई की दुकान है । वहां एक टोकरी में मुर्गे भरे पड़े हैं। वह टोकरी उन मुर्गों के लिए थोड़ी देर का ही ठिकाना है। छोटी-सी टोकरी में इतने मुर्गे हैं कि वे ठीक से सांस तक नहीं ले पा रहे हैं ।
दुकान का मालिक एक मुर्गे को बाहर निकालता है, उसकी गर्दन काट देता है। वह एक-एक कर मुर्गों की गर्दन काटता चला जा रहा है । अपने साथी को कटता देखकर भी किसी मुर्गे के मन में दया नहीं आती । उसकी ओर ध्यान तक कोई नहीं देता। अपने में ही मगन हैं
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