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जीवन्त है, चैतन्य है । परमात्मा आत्मा का ही परम रूप है, चेतना की ही पराकाष्ठा ।
चिर सजग प्रांखें उनींदी, प्राज कैसा व्यस्त बाना | जाग तुझको दूर जाना ।
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना । तू न अपनी छांह को, अपने लिए कारा बनाना । जाग तुझको दूर जाना ।
यात्रा लम्बी है, बाधाएं अनगिनत हैं, जाग्रति और सम्बोधि अगर साथ है तो तुम संसार के नश्वर-पथ पर भी अपने अनश्वर पदचिह्न छोड़ कर जा सकते हो। हमारे कदम हो जागरूक, जीवन की इसी में सार्थकता है ।
जागो और जिओ । जिओ और मुक्त हो जाओ ।
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