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बजाय जीवन की वास्तविकता के धरातल पर आएं। अांख के भीतर की आंख खोलें, अपने में जागें ।
संसार तो पहले भी था, अब भी है, आगे भी रहेगा। मैं उस संसार को सपना कहता हूं, जिसका निर्माण हमने किया है । ये अपना है, वो पराया है। ये मित्र है, वो शत्रु है। उसी संसार को मैं सपना कहता हूं। ये संसार तो है ही, रहेगा भी । मैं तो उस संसार की बात कर रहा हूं जिसका निर्माण हमने, हमारे मन ने किया है, सीमाओं में बांधा है । आज जो मित्र है, कल शत्रु बन जाता है। पत्नी आपकी सेवा करती है, लेकिन कल उसका मन बदल सकता है, आप निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकते। आने वाले कल की भविष्यवाणी आप नहीं कर सकते। इसीलिए कहता हूं संसार एक सपना है। जरूरत एक बार इस संसार को सपना समझने की है। जिसने जीवन में एक बार जान लिया कि 'मृत्यु' है, और मुझे भी मरना है, वही व्यक्ति जीवन में क्रांति घटित कर पाएगा।
अभी तो ये लगता है कि कोई और मर रहा है । किसी और की मृत्यु हो रही है। किसी की भी मृत्यु है, वह हमें हमारी मृत्यु की सूचना देती है। सब लाइन में लगे हुए हैं, जाने कब किसका नम्बर या जाए। कुछ चले गए, कुछ जा रहे हैं, हम भी जाएंगे। जिसने मृत्यु का सत्य जान लिया, उसने संन्यास प्राप्त कर लिया। मौत जब भी आए, उसका स्वागत करना है। पर जब तक जीएं, सुध-बुध के साथ, सम्बोधि के साथ जीएं। अभी हमें भरपूर जीना है, लेकिन अपनी छाया के कारा में नहीं, अंधियारा में नहीं। हमारा हर कदम सधा हो। हम अपने प्रति, अपने विचारों के प्रति, अपने चिंतन के प्रति सजग-जागरूक हों। परमात्मा हमारी प्राप्ति नहीं, वरन् हमारी परिणति हो । जो पल-पल ध्यान और बोध के साथ जीता है, वह
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