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ने देखा कि वह सोने के महल में बैठा है, उसके सात रानियां हैं । सभी से एक-एक राजकुमार हैं। सम्राट ने सातों राजकुमारों को अपने पास बुलाया। जब वे पास आ गए तो सम्राट ने उन्हें गले लगाना चाहा, लेकिन यह क्या ? सम्राट की अांख खुल गई। सभी गायब, महल, राजकुमार । उसने देखा राजरानी रो रही हैं। राजकुमार चल बसा था। राजा की प्रांख राजरानी का रुदन सूनकर ही खुली थी। सभी रो रहे थे । राजा हतप्रभ । सभी ने राजा से कहा, आप क्यों नहीं रो रहे हैं। राजकुमार के मरने का आपको दुःख नहीं हुआ क्या ?
राजा हंसने लगा। किसके लिए रोऊं। इस एक राजकुमार के लिए या उन सात राजकुमारों के लिए जो अभी मेरे पास थे, अब गायब हो गए। राजरानी ने समझाया कि वो तो सपना था, यह असली है। राजा ने कहा कि दोनों ही स्वप्न थे। एक बंद आंख का सपना था, एक खुली आंख का ।।
यह संसार भी तो स्वप्न ही है । सपने से आंख खुल गई और साथ ही इस संसार रूपी सपने से भी अांख खुल गई। भाक्त का, संन्यास का मार्ग मिल गया। लम्बी नींद से जाग गए। संसार के दलदल से निकलने का मार्ग ढूंढ लिया । अंतर्दृष्टि खुल गई । हकीकत में अहसास होने पर ही जीवन में रूपान्तर घटित होता है । जब आदमी को लगेगा कि संसार सपना है, वीराना है, तभी जीवन में संन्यास सम्भव होगा । कदम आत्मोन्मुख होंगे, मूल्य पर केन्द्रित होंगे।
स्वप्न, स्वप्न है। स्वप्न अगर दो हैं, तो सत्य दो सौ हैं । स्वप्न कितने भी लुभावने क्यों न हों, पर बन्द आंखों के सपनों के चलते खुली आंखों के सत्य को ठुकराया नहीं जा सकता। 'प्रांख में हो स्वर्ग लेकिन पांव पृथ्वी पर टिके हों ।' बेहतर होगा हम स्वप्न की
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