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________________ पंतजलि के अनुसार चित्त की तीन अवस्थाएं होती हैं। पहली सुषुप्ति, दूसरी जाग्रति और तीसरी स्वप्नावस्था। सुषुप्ति का अर्थ सोना, जाग्रति माने जागना और स्वप्नावस्था का मतलब स्वप्न देखना होता है । आदमी पूरी तरह से एक स्थिति में रहे । या तो वह जाग जाए, या सो जाए। या तो वह भक्ति का मार्ग अपना ले, या फिर ध्यान का मार्ग अपना ले। बीच का मार्ग कभी सार्थकता नहीं दे पाएगा। स्वप्न में खाए लड्डू से पेट न भरेगा। कोई भी सपना हमारा अपना नहीं होता । सपना मन की चंचलता का मात्र छायांकन होता है । न जाने कैसे सपने पा जाते हैं। सपने में बड़ा मजा आता है। आदमी जो चीज जागते हुए नहीं पा सकता है उसका सपना देखता है। लेकिन यह झूठा मजा है। सपने क, प्रानन्द कोई आनन्द नहीं होता। सपने में चाहे जो मौज मना लो, जब आँख खुलती है तो अतृप्ति ही महसूस होती है। सारा संसार एक सपना ही तो है। कुछ खुली आंख का सपना है तो कुछ बंद अांख का सपना है। जिस आदमी ने यह जान लिया कि संसार सपना है, उसके जीवन में संन्यास के अलावा और कोई विकल्प शेष रहेगा ही नहीं। जब तक आप संसार को सत्य समझोगे, तब तक जीवन में संन्यास घटित नहीं होगा । जिस दिन यह संसार एक सपना लग गया, एक प्रवंचना लग गया, उस दिन निश्चित तौर पर जीवन में मुनित्व घटित हो जाएगा। प्रात्मा संसार का अतिक्रमण कर जाएगी। कहते हैं : एक देश का राजकुमार बीमार हो गया । इतना बीमार कि मरण शय्या पर पड़ गया। सम्राट, राजमाता, सभासद सभी राजकुमार को घेरे बैठे थे। किसी भी क्षण राजकुमार की जीवन-डोर टूट सकती थी। ऐसे में सम्राट को नींद आ गई । सम्राट ( २५ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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