________________
बार ही खिलता है । फिसलन भरे मार्ग में भी जागरूक व्यक्ति के फिसलने की संभावना कम रहती है ।
आत्म-बोध को विस्मृत कर जीने में मनुष्यत्व का क्या अर्थ ? अपने को भुलाकर जीने वाले तो जानवर हैं । हम पशु नहीं, मनुष्य हैं । फूल की तरह खिले बिना, अपने आपको उपलब्ध हुए बिना चले जाना स्वयं की स्वयं से ही पराजय है ।
सोना भी जाग्रत अवस्था में जरूरी है । कुछ लोग सोने के बाद ऐसे हो जाते हैं मानो मुर्दा हो गए हों । उनके साथ कुछ भी कर लो, उन्हें पता ही नहीं चल पाता । अगले दिन प्रांख खुलेगी तो फिर पैदा हो जाएंगे, नया जीवन शुरू करेंगे । कुछ लोग इस तरह सोते हैं कि आप उनके नीचे से बिस्तर निकाल लो, उन्हें पता ही नहीं चलता । उनके कपड़े तक उतार लो, तो कोई खबर नहीं । ऐसे आदमी को अपना भान कहां से होगा। उसकी मूर्छा गहरी है । भीतर का दलदल गहरा है । भीतर के बंधन सुदृढ़ हैं ।
तुम चाहे जो भी काम करो जागे-जागे करना । एक दफा तो अगर अशुभ भी करना हो, तो भी जागरूकता के साथ, द्रष्टाभाव के साथ, मात्र गवाह बनकर । क्रोध करो तो भी जागरूक रहना । कहीं ऐसा न हो कि अज्ञान की दशा में आपका क्रोध प्रकट हो जाए । क्रोध को भी जागरूकता के साथ, बोधपूर्वक प्रकट करना । वो क्रोध भी सार्थक होगा । वो क्रोध कर्म की निर्जरा में सहायक होगा । हमारा हर कदम जागरूकता के साथ उठना चाहिए । के साथ उठने वाले कदम में अगर कुछ अनुचित भी हो जाये, पहली बत तो होगा ही नहीं, फिर भी हो जाये, तो इससे तुम्हारी ग्रात्मदशा में, अन्तर-अवस्था में कोई फर्क नहीं प्रायेगा । तुम्हारी चेतना स्वस्थ रहेगी ।
जागरूकता
Jain Education International
( २४ )
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org