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कैसी लागी लगन, मीरा हो गई मगन । वो तो गली-गली हरि गुन गाने लगी । महलों में पली बनके जोगन चली, मीरा रानी दीवानी कहने लगी
कैसी लागी लगन
ऐसा होता है ।
दूसरा मार्ग महावीर, बुद्ध और पंतजलि का है, वहां शरण का क्या काम ? वे तो कहते हैं 'अशरण भावना' । फिर किसकी शरण में जानोगे ? इस दुनिया में तुम्हारा पिता शरणभूत नहीं है, माता शरणभूत नहीं है । पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार कोई भी शरणभूत नहीं है फिर परमात्मा भी शररणभूत कैसे होगा ? अशरण यानि किसी की शरण नहीं । यदि परमात्मा शरण होते तो गौतम को रोना नहीं पड़ता । महावीर के रहते ही उन्हें परम ज्ञान प्राप्त हो गया होता ।
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किनारे को भी पार
परमात्मा ने गौतम को जाते-जाते एक ही सीख दी कि तुम सारे सागर पार कर चुके हो तो अब मेरे किनारे आकर क्यों बैठे हो ? अगर तुम्हें अपने आप को प्राप्त करना है तो इस कर जाओ । तुम जैसे भी हो, अगर तुम्हें 'तुम' बनना है तो तुम्हें परमात्मा को भी छोड़ना होगा । मैं बुद्ध नहीं बनना चाहता, राम या कृष्ण नहीं बनना चाहता, मैं तो वह होना चाहता हूं, जो मैं हो सकता हूं। मुझमें जो सम्भावना है, सिर्फ वही होना चाहता हूं ।
आत्मा को पाने के लिए 'परमात्मा' को भी पार करना पड़ता है । तुम अगर स्वयं को उपलब्ध हो रहे हो और उस समय अगर परमात्मा भी आ जाए, तो उसे भी दर किनार कर दो। तुम्हारे लिए 'तुम' ही सर्वोच्च मूल्य हो । दुनिया में महावीर एक ही पैदा हो
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