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________________ अगर सागर होना है, तो सागर में खोना होगा। मिटाना होगा स्वयं को। अहं को मिटाकर ही सर्व को आत्मसात् किया जाता है । यह पहला मार्ग हुअा। यानी पहला गंगा सागर से गंगोत्री तक और दूसरा गंगोत्री से गंगासागर तक । पहला मार्ग भक्ति है और दूसरा मार्ग ध्यान है । विराटता तो दोनों की परिणति है। विराटता को तो दोनों ही मार्गों से उपलब्ध कर जानोगे, मगर फर्क है । भक्ति का सम्बन्ध परमात्मा से है, ध्यान का सम्बन्ध प्रात्मा से है, स्वयं से है। हमारा पहला धर्म परमात्मा को पाना नहीं है, स्वयं को पाना है । जो आत्मवान् नहीं है, वह परमात्मा की साकारता से भी वंचित ही रहेगा। अपने को उपलब्ध करके ही तुम औरों को पा सकते हो। आत्मा का क्रम पहला है, परमात्मा दोयम है। आपकी मानसिक तैयारी कैसी है, अन्तर की अभीप्सा कैसी है परमात्मा पाने की या परमात्मा होने की ? ___ श्राप परमात्मा के श्रीचरणों में जाकर समर्पित होना चाहते हो तब भी पहुंच जाओगे और स्वयं परमात्मा बनते हो, तब भी पहुंच ही जानोगे । परमात्मा हमारा स्वभाव है और यह मार्ग उस स्वभाव में वापसी का है। जो लोग भक्ति करेंगे वे भी पहुंच जाएंगे और जो ध्यान करेंगे, वे भी पहुंच जाएंगे। मूल बात मूल स्रोत तक पहुंचना है। गंगोत्री तक पहुंचना है। गंगासागर से गंगोत्री तक की यात्रा आसान नहीं है। यहां भी दो रास्ते हैं। पहला तो यह कि अपने आपको गंगासागर में आत्मसात् कर लो। सूर्य की ऊष्मा से भाप बनो, बादल बनो और गंगोत्री पर जाकर बरस जाओ। यह तो एक मार्ग हुआ। दूसरा मार्ग जरा कठिन है। जब हम स्वयं परमात्मा बनने का प्रयास करेंगे तभी गंगोत्री की ओर हमारी यात्रा शुरू हो जाएगी, गंगासागर से गंगोत्री तक, तलहटी से शिखर की अोर । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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