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आप अपना पहले का ज्ञान वहां छोड़कर पाएं जहां आपने जूते उतारे हैं। मेरे मन-मन्दिर की सभा में प्रवेश करें तो बिल्कुल कोरा कागज बनकर आएं । तभी आपके रिक्त मन में मेरी बातें स्थान पा सकेंगी, अन्यथा आप तर्क-वितर्क की माया में फंस जाएंगे। तब आप श्रोता नहीं 'सरोता' हो जाएंगे और सरोता सिर्फ काटता है, उसे जोड़ना नहीं आता। मेरी बातें न किसी को काटने की है, न कटने की है, सिर्फ अपने आप से जुड़ने की हैं। जो लोग पूर्व के तर्क-वितर्क के आधार पर मेरी बातों को लेंगे तो वे परमात्मा के इस ज्ञान की अनुभूति नहीं कर सकेंगे। सरोता मत चलाइए। मैं आपको सौ बातें कहूंगा। हो सकता है कि उसमें से कोई दो बातें आपके मन में भीतर तक उतर जाए। मैं समझूगा मेरा वे बातें कहना और आपका सुनना सार्थक हो गया ।
परमात्मा ने रणभेरी बजाई। मैं भी रणभेरी बजा रहा हूं। रणभेरी बजाने का उद्देश्य यही है कि तुम जैसे-तैसे भी जाग जायो । भगवान इससे अधिक कुछ और नहीं चाहते । जो जाग गए, समझो उनका जीवन सार्थक हो गया। परमात्मा को पाने का यही रास्ता है कि आप नींद से जाग जाएं । आप या तो परमात्मा के प्रति स्वयं को समर्पित कर दें, या फिर स्वयं परमात्मा होने के लिए कृत संकल्पित हो जाएं। दो ही मार्ग हैं । एक मार्ग भक्ति का है, दूसरा ध्यान का। एक मार्ग समर्पण का, दूसरा संकल्प का। जिस तरह नमक पानी में घुलकर अपना अस्तित्व समाप्त कर लेता है, ठीक उसी तरह अपने अहम् को विगलित करना होता है। और तब गंगा भी गंगा नहीं रहती। सागर में जाकर वो भी सागर हो जाती है । तब मीरा, मीरा नहीं रहती, वह भी सरिता की तरह सागर में मिलकर विराट हो जाती है। मीरा ही कृष्ण बन जाती है। सागर में मिलने के बाद पानी की हर बूद में सागर का ही स्वाद समा जाता है। बूद को
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