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संसार के दलदल में ऐसा प्रानन्द कदम-कदम पर मिलता है । आदमी को अगर यह अहसास हो जाए कि मैं जो खुजा रहा हूं, उसमें आनन्द नहीं, पीड़ाएं मिलेंगी तो वह खुजाना बंद ही कर दे । खुजली न करोगे तो दर्द तो होगा, मगर वह धैर्य की परीक्षा होगी । प्राप उस परीक्षा में पास हो गए तो साधुत्व का प्रथम द्वार आपके लिए खुल गया समझो ।
आत्म-ज्ञान कोई ऐसी चीज नहीं है कि बाहर से कोई आएगा और हमें दे जाएगा । जीवन में जहां पीड़ाएं हैं, कष्ट हैं, उन्हें हमने जान लिया यही प्रात्म-ज्ञान की प्राप्ति का पहला पाठ है । जिसने यह जान लिया कि खुजाने में पीड़ा है वह नहीं खुजाएगा। आपने कुत्ते को हड्डी चबाते देखा होगा । चबाते - चबाते उसके मुंह में खून निकलने लगता है । कुत्ता समझता है यह खून किसी और का है । उसे आनन्द आने लगता है । जब उसे पता लगता हैं कि खून उसी का है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । मनुष्य का प्रानन्द, आनन्द नहीं, जीवनऊर्जा का विनाश है ।
हम सब परमात्मा के पास जाते हैं। उनसे भव-सागर पार करवाने की प्रार्थना करते हैं, मगर हमारे ही लिए परमात्मा द्वारा बजाई जा रही रणभेरी की आवाज हमें सुनाई नहीं देती । किसी को सुनाई देती भी है तो वह अनसुनी कर देता है । धार्मिक और धार्मिक लोग हर युग में रहे हैं । राम और कृष्ण के युग में भी ऐसे लोग होते थे । अब परमात्मा का सानिव्य पाकर भी कोई अपना जीवन धन्य नहीं मान पाता तो यह उसी का दुर्भाग्य कहा जाएगा ।
अहंकार ने भी हमारा बहुत नुकसान किया है । प्रभु की कृपा आप पर भी हो सकती है अगर आप अहंकार को तिलांजलि दे सकें ।
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