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भगवान के पास जाकर पूरा वाकया सुनाया और इसका अर्थ पूछा । भगवान ने उन्हें समझाया कि बूढ़ा होने के बावजूद बद्ध रेक की देशभक्ति और शौर्य की भावना नहीं मरी थी। यह कारण रहा कि रणभेरी सुनते ही उसमें शक्ति का संचार हुआ। पूरी बात कहने के बाद भगवान ने कहा मैं भी तो कब से रणभेरी बजा रहा हं, मगर तुम लोगों की नींद नहीं उड़ रही है। प्रमाद से छुटकारा नहीं मिल रहा है । बद्धरेक तो जानवर था, तुम लोग मनुष्य होकर भी नहीं जाग पा रहे हो । परमात्मा का सामीप्य पाकर भी संसार-चक्र से नहीं छूट सके, इससे ज्यादा पीडाजनक स्थिति और क्या हो सकती है । तुमसे तो वो हाथी ही अच्छा है जो रणभेरी सुनकर जाग्रत हो गया। मेरे पास इतने आदमी आते हैं मगर गौतम कोई-सा ही बन पाता है । अधिकांश गौशालक बनकर रह जाते हैं ।
परमात्मा के समीप पहुंचकर भी कोई व्यक्ति गौतम न बन पाए तो इसमें परमात्मा का क्या कुसूर ? मैं भी तो रणभेरी बजा रहा हं । जागो, अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध करो। सारी दुनिया बद्धरेक की तरह दलदल में फंसी है। प्रादमी दलदल से निकलने का प्रयास करता भी है, मगर वह प्रयास ऊपरी ही होता है । इसलिए वह दलदल में और धंसता चला जाता है।
किसी ने थूका। एक मक्खी उस पर आकर बैठी। बाद में उसके पांव के साथ पंख भी उसमें धंसते चले गए। उसका प्रयास बाहर निकलने का होने के बावजूद वह नहीं निकल पाती और वहीं दम तोड़ देती है । आदमी की भी हालत ऐसी ही है। वह सोचता है कि मजा कहीं और से आ रहा है । शरीर में खुजली हुई । मनुष्य को खुजाने में मजा आने लगा मगर जब शरीर से खून निकलने लगा, तब उसे समझ में आया कि थोड़े से मजे की कितनी बड़ी कीमत उसने चुकाई है । सारी जिन्दगी खुजाने में ही गुजर जाती है ।
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