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कम और दलदल अधिक हो गई थी । दलदल में उसके पांव धंसने लगे तो वह चिवाड़ने लगा। वह दलदल से निकलने में जितना जोर लगाता, उसके पांव उतने ही और धंसते जाते ।
थोड़ी ही देर में बद्धरेक की चिंघाड़ों से सैकड़ों लोग वहां जमा हो गए । बद्धरेक को दलदल से निकालने के लिए सभी संभावित प्रयास कर लिए गए मगर वह दलदल से बाहर न निकल सका । सभी के मन में इस बात को लेकर दुःख उमड़ने लगा कि क्या ऐसे महान हाथी की मौत इतनी दर्दनाक होगी ! कोई उपाय न बचा तो मगध के सम्राट ने अपने बूढ़े महावत को बुलाया, जो बद्धरेक की भांति ही अपने अंतिम दिन काट रहा था । महावत वहां आया और हाथी को दलदल में फंसा देखा। उसके झरीदार चेहरे पर एक क्षीण मुस्कान पाई।
सरोवर के किनारे खड़े लोगों की नजरें अब महावत पर थी। वे यह जानने को बैचेन थे कि महावत हाथी को कैसे बाहर निकालेगा। महावत ने किसी को भेजकर रणभेरी मंगवाई और उसे बजाना शुरू किया। कुछ ही क्षणों में, लोगों की आँखें हैरत से खुली रह गई जब उन्होंने देखा कि हाथी एकाएक उछला और किनारे पर आकर चिंघाड़ने लगा। इस बार की चिंघाड़ पहले जैसी नहीं थी।
राजा ने महावत से पूछा कि यह कैसे संभव हुआ। रणभेरी में ऐसा क्या था जो यह चमत्कार हुअा। महावत कहने लगा, यह हाथी रणभेरी की आवाज से परिचित है। इसने रणभेरी सुनी तो सोचा कि युद्ध में जीता है और इसी भावना ने इस में इतनी शक्ति भर दी कि यह दलदल से बाहर आ गया।
जब यह घटना घट रही थी, भगवान के कुछ शिष्य उधर से गुजर रहे थे। उन्होंने वहां रुक कर सारा घटनाक्रम देखा। उन्होंने
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