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इंसतीन बहुत बड़ा वैज्ञानिक हुआ है । जब वह मरने लगा तो डाक्टरों ने उससे पूछा कि अगले जन्म में क्या बनना चाहोगे ? उसने नजर इधर-उधर घुमाई । कुछ क्षरण बाद बोला - मरने के बाद मैं कहां जाऊँगा, यह तो नहीं जानता, लेकिन अगर कोई शक्ति है तो मैं उससे मांग करता हूँ कि मुझे अगले जन्म में वैज्ञानिक न बनाना ।
रों को रोशन किया, औरों का आविष्कार किया, पर दीये तले अंधेरा रह गया । मृत्यु उसी अंधकार का नाम है । औरों को रोशनी देकर तुम औरों के लिए अमर हो जाओगे, पर वह अमरता और विजय क्या अर्थ रखती है, जब व्यक्ति स्वयं से हार जाता है । जीवन को अगर बाहर जिओगे, तो बढ़ते-बढ़ते सिकन्दर हो सकते हो । अगर भीतर जिओगे तो भीतर के साम्राज्य के महावीर हो सकते हो । जीवन के सूत्र और स्रोत न केवल बाहर हैं और न ही सिर्फ भीतर । जीवन देहरी है, जिसका सम्बन्ध बाहर से भी है और भीतर से भी । भौतिक समृद्धि के साथ प्रांतरिक समृद्धि आवश्यक है । भिखारीपन न भीतर का हो, न बाहर का प्रांतरिक समृद्धि तुम्हारे लिए है, बाह्य समृद्धि जगत् के लिए है । जीवन जगत् का प्रतिबिम्ब है । हमें समृद्धियों को आत्मसात् करना है । अपने को, धरती को, स्वर्ग बनाना है । हमें स्वयं को ऐसा रूप देना है, जिससे अस्तित्व हम पर हर ओर से अमृत बरसा सके । रोशनी की बौछार कर सके ।
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