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इसका अर्थ यू लिया कि जंगल में जानवर नंगा रह सकता है तो मैं क्यों नहीं रह सकता। अगर पेड़ को जंगल में खड़े-खड़े ही भोजन मिल सकता है तो मुझे क्यों नहीं । महावीर का यह स्वभाववाद है । जो जैसा है, ठीक है। लेकिन महावीर तो महावीर थे, हम महावीर नहीं हैं।
हम व्यक्ति के मनोविज्ञान को समझे। हर व्यक्ति कुछ-न-कुछ प्राप्त करना चाहता है। आपके पास हजार रुपये हैं, तो लाख की इच्छा पैदा होती है । लाख रुपये कमा लिए तो करोड़ की चाह में मन मचलने लगता है । हम कुछ-न-कुछ करते रहते हैं। इतने सारे आविष्कार हो गए, लेकिन दुनिया के वैज्ञानिक अब भी प्रयत्नशील हैं । खोज इसलिए जारी है क्योंकि संभावनाएँ कभी नहीं मरती । संभावनाएँ तो असीम हैं। संभावनाएँ हैं, इसीलिए तो मैं आपको आमंत्रित कर रहा हूँ। मैं तो सिर्फ एक ग्रामन्त्रण हूँ, आह्वान हूँ मनुष्य में छिपी दिव्यता की सम्भावना को आत्मसात् करने के लिए ।
व्यक्ति की खोज हमेशा दो दिशा में होती है । एक मार्ग बाहर की ओर जाता है जबकि दूसरा भीतर जाता है। आदमी जब भीतर की ओर चलने लगता है तभी उसकी यात्रा शुरू होती है। बाहर की खोज विज्ञान की है लेकिन भीतर की खोज अध्यात्म की है । इन दोनों को एक करने की कोशिश मत करना । विज्ञान का सम्बन्ध बाहर से है, लेकिन अध्यात्म का सम्बन्ध भीतर से है । जहाँ विज्ञान परास्त होगा, वहीं अध्यात्म की शुरुआत होगी। विज्ञान शरीर का रेशा-रेशा
आपकी आँखों के सामने खोलकर रख देगा मगर उस शरीर में जो स्पंदन है उसका स्रोत वह नहीं बता सकेगा। इसके लिए आपको अध्यात्म की शरण में ही आना होगा। उस 'अज्ञात' तक विज्ञान की पहुंच नहीं है, जहां विज्ञान की सीमा समाप्त होती है, वहीं से अध्यात्म की सीमा प्रारम्भ होती है ।
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