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और भीतर सोया इंसान जाग जाएगा, वह दिन उसके लिए परम पुण्य का दिन होगा। जीवन का परम प्रसाद पाने का दिन होगा। मनुष्य के आन्तरिक जीवन से पशु की मृत्यु हो, तो ही प्रभु होने के द्वार खुल सकते हैं।
मनुष्य ने स्वयं के सत्य को खोज लिया तो समझो वह अपना जीवन तक बलिदान कर सकता है। आपने आज किसी शास्त्र को पढा, आप उस किताब के लिए अपने आपको कूरबान नहीं कर सकते, लेकिन किसी सत्य को आपने जान लिया तो समझो आप अपने को कुरबान करने की क्षमता भी प्राप्त कर लेंगे।
अध्यात्म को जानं लेना अलग बात है और अध्यात्म को ढूढ कर उपलब्ध हो जाना दूसरी बात है। आप जब तक किसी किताब के सहारे चलते रहोगे, तब तक सिर्फ धार्मिक कहलाओगे, आध्यात्मिक नहीं हो पायोगे । जब तक किसी वाणी के सहारे चलोगे, यही स्थिति बनी रहेगी। जिस दिन आपने प्रात्म-तत्त्व खोज लिया, उस दिन आध्यात्मिक हो जाओगे ।
जैन साधु को 'ढढिया' कहा जाता है। इसका अर्थ है : जो ढूढता है, खोजता है । जिसकी खोज समाप्त हो गई, उसकी जिन्दगी भी समाप्त हो गई समझो । जब तक खोज है, तभी तक विज्ञान है, अध्यात्म है। इसलिए आप अपने आप को 'टू ढिया' बना सको तभी जीवन की सार्थकता मानना । 'टूढिया' होने का अर्थ केवल साधु या संत बन जाने से नहीं है। जो ढूढ रहा है, वह ढूढिया। शेष सब भेड़-धसान ।
जीवन भेड़-धसान नहीं, जीवन स्वयं एक विज्ञान है। हम में मानी हुई श्रद्धा नहीं, जानी हुई श्रद्धा हो । मानने और जानने में
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