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________________ भगवान बुद्ध का ज्ञान महावीर से भिन्न है । वे कहेंगे कि यदि तुमने अपने आपको एक आत्मा मान लिया, नित्य सनातन तत्त्व मान लिया तो इससे बड़ा तुम्हारा मिथ्यात्व दूसरा न होगा। कृष्ण के लिए जो भक्ति है, महावीर के लिए वही सम्यक् दर्शन है । और बुद्ध के लिए वह मिथ्यात्व है, अविद्या है। आप किसे मानेंगे ? हर एक अपने अनुभव से कहता है । बेहतर होगा, हम उस अभिव्यक्ति को अपनी अनुभूति न मानें । पहले अपने अनुभव की कसौटी पर कसें । हम यह जानने का प्रयास करें कि मैं कौन हूँ, मैं कहाँ मे आया हूँ, कहाँ जाना है ? मेरे जीवन का मूल स्रोत क्या है ? जगत् से मेरे सम्बन्धों का क्या अर्थ है ? इसलिए मै कहता हूँ, अंधानुकरण नहीं होना चाहिए, आत्म-अनुसंधान होना चाहिए । एक बंजारे ने किसी फकीर की सेवा की। फकीर ने प्रसन्न होकर उसे एक गदहा भेट में दे दिया। बंजारा प्रसन्न हुआ कि चलो सामान ढोने में आसानी हो जाएगी। कई माह बीत गए । एक बार वह बंजारा गदहे पर माल लादे जंगल से गुजर रहा था । एकाएक न जाने क्या हुआ कि गदहा मर गया । बंजारे को गदहे से काफी लगाव हो गया था। उसने सोचा कि इसकी 'मिट्टी' खराब क्यों की जाए । उसने एक गड्ढा खोदा और और उसे दफना दिया। ऊपर मिट्टी डालकर उसने एक अगरबती जला दी । जंगल से फल तोड़कर उस पर चढ़ा दिए । उसी समय एक और बंजारा वहाँ से गुजरा । उसने पहले बंजारे की देखादेखी गदहे की कब्र पर अगरबती लगाई और दो रुपये चढ़ा दिए । बंजारे पाते रहे और अगरबती जलाते रहे। वे आगे जाकर चर्चा करते कि जंगल में एक पहुँचे हुए संत की समाधि है। उधर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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