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दुश्मन तो साफ जाहिर है कि दगा देगा ही, मगर मित्र, नजदीकी रिश्तेदार तक दगा दे जाते हैं । आजकल घरों में बहू पर बहुत अत्याचार हो रहे हैं । कौन कर रहा है ? कोई बाहर से आ रहा हैं ? नहीं, घर में ही उसे प्रताड़ना मिल रही है । प्रताड़ित करने वाले उसके अपने हैं । तो यह सब समय की माया है । कोई आदमी गरीब हो तो, गरीबी में दगा देने वाले कुछ ज्यादा ही मिलते हैं । कहीं चोरी हो जाए, पहले शक घर के गरीब नौकर पर किया जाता है । भले ही चुराने वाला मकान मालिक का बेटा ही क्यों न हो, गरीब के सिर इलजाम मढ़ दिया जाता है ।
किसी दुकान का नौकर कहीं पैसे लेने गया वापसी में पैसे कहीं गिर गए या खो गए तो दुकानदार सीधे इस नतीजे पर पहुँच जाता है कि नौकर झूठ बोल रहा है। रुपये उसने चुरा लिए हैं । एक गरीब आदमी समय का मारा होता है, उसे हर आदमी मारने लगता है । और जिस आदमी को समय ने ऊँचा उठाया हो वो लाखों रुपए डकार जाए तो भी उसे कोई कुछ नहीं कहता । समय अगर साथ दे तो प्रादमी गोबर में हाथ डालेगा तो सोना निकाल लेगा । इसके विपरीत समय से मार खाने वाला आदमी सोने में हाथ
गा तो वो भी मिट्टी हो जाएगा । भाग्य और कुछ नहीं, समय का खेल है । आदमी भाग्य का मारा नहीं है, वह समय का मारा है ।
आदमी समय का हस्ताक्षर है । समय चाहे टेढ़ा-मेढ़ा सीधा कर जाए, आदमी तो समय के सागर की तरंग भर है । वह चाहे तो उछाल दे, वह चाहे तो भंवर बन कर नीचे डुबो दे । समुद्र में ज्वारभाटा आता है । ज्वार ऊपर उठता है, भाटा नीचे गिरता है । आदमी भी ऐसे ही ऊपर उठता और नीचे गिरता है । जिस आदमी
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