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वास्तव में व्यक्ति के लिए उठना, बैठना, सोना, यहां तक कि भोजन करना भी धर्म हो सकता है । ध्यानपूर्वक बैठ गए तो बैठना भी धर्म हो जाएगा । बिना ध्यान बेहोशी में बैठे तो वह अधर्म हो सकता है । मनुष्य जीवन भर जो पाप करता है, बेहोशी के कारण करता है, अज्ञान के कारण करता है । जीवन में अज्ञानता व बेहोशी के कारण दस लाख पाप करलो और होश में दो पुण्य भी कर लोगे तो वे सारे पाप समाप्त हो जाएंगे ।
मेरी प्रिय कहानी है, एक बार भगवान बुद्ध किसी गांव से गुजर रहे थे । उन्हें दूसरे गांव जाना था । उन्होंने राहगीरों से पूछा कि मुझे अमुक गांव जाना है, कौनसा मार्ग ठीक रहेगा ? राहगीरों ने बताया कि सबसे नजदीक का रास्ता तो वही है, जिस पर आप चल रहे हैं, लेकिन इस मार्ग पर कोई जाता नहीं है । कारण इस मार्ग पर एक डाकू अंगुलिमाल रहता है जिसने लोगों की हत्या कर उनकी अंगुलियां देवी को चढ़ाने की कसम ले रखी है । वह अब तक
सौ निन्याववे लोगों की हत्या कर चुका है और उसकी कसम पूरी होने में अब एक आदमी ही शेष है । आप इस मार्ग से मत जाइए ।
पर बुद्ध उसी मार्ग पर रवाना हो गए । अंगुलिमाल ने दूर से उन्हें आते देखा तो बड़ा खुश हुआ । उनकी मनौती जो पूरी होने जा रही थी । जैसे ही बुद्ध समीप आए, वह बोला - ' रुक जाओ ।' बुद्ध बोले- 'मैं तो रुका हुआ हूं, तुम रुक जाओ ।' अंगुलिमाल चौंका । यह आदमी तो उसे कह रहा है कि रुक जाओ, मैं तो रुका हुआ ही हूं और खुद को रुका हुआ कह रहा है, जबकि वह चल रहा है । अंगुलिमाल ने बुद्ध से कहा - 'पहले तो मैं तुम्हें इसलिए मारना चाहता था क्योंकि मुझे तुम्हारी अंगुली काटनी थी, लेकिन अब मैं तुम्हें इसलिए मारूंगा क्योंकि तुम झूठ बोल रहे हो। तुम कह रहे
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