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________________ हो कि मैं रुक जाऊं, अरे, मैं तो रुका हुआ ही हूं, चल तो तुम रहे हो।' बुद्ध मुस्कुराए और बोले- मैं तो वास्तव में रुका हुआ हूं, निरंतर हिंसा की राह में तो तुम चले जा रहे हो, इसलिए तुमसे कह रहा हूं, रुक जाओ। मैं तो रुका हुआ ही हूं। जिसका मन रुक गया, वो आदमी रूक गया, जिसका मन बह रहा है, वो चल ही रहा है । गृहस्थ वो नहीं है, जो संसार में बैठा है । गृहस्थ तो वो है, जिसके पांव, एक मकान में टिके हैं, लेकिन मन इधर-उधर घूम रहा है। मुनि वो है, जिसके पांव तो चल रहे हैं, लेकिन मन एक जगह टिका हुआ है । जिसका मन टिक गया, वो मुनि और जिसका मन बह गया वो संसारी।' ___महावीर ने बहुत अच्छा शब्द दिया- मुनि । वास्तव में मुनि का अर्थ है, जिसका मन मौन हो चुका हो। देह से देहातीत होना इसी का नाम है। मरने के बाद तो हर किसी को परमात्मा मानते ही हैं, जीते जी किसी को मरमात्मा मानो तो शायद कुछ उपलब्ध कर भी सको। ऐसा नहीं है कि महावीर को लोगों ने आसानी से भगवान मान लिया हो। बहुत से ऐसे लोग हुए जिन्होंने महावीर को पाखंडी कहा, तीर्थंकर नहीं माना। लेकिन महावीर के निर्वाण के बाद लाखों-लाख लोग उन्हें भगवान मानकर पूजने लगे। उन्हें भगवान मान लिया, इसीलिए कहता हूं, जीते जी चरण पकड़ लो तो पार लग जानोगे। मरने के बाद धूप-दीप जलाते रहो, सिर्फ धुआं होगा। मरने के बाद सब शून्य है और ऐसा आदमी, बुद्ध जब अंगुलिमाल को ललकारे कि उठा खड़ग, मार डाल मुझे तो इससे आप क्या अर्थ लगाएंगे ? बुद्ध ने कहा कि भले ही मुझे मार डाल ( १०६ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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