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चीजें रहें, आप अपरिग्रही हो सकते हो। तब महावीर यही कहेंगे कि स्थूलिभद्र चाहे वेश्यालय में चले जाएं, और वहां अपना वर्षावास करें तो भी वे बेदाग ही रहेंगे।
आज के युग में अगर स्थूलिभद्र हो जाएं तो उन्हें लोगों के कोप का भाजन होना पड़े। लोग कहदें-यह कोई साधु है, जो वेश्यालय में प्रवचन कर रहा है। अगर कोई व्यक्ति इतना मुक्त हो गया है कि वेश्यालय में बैठ कर प्रवचन कर रहा है तो समझो वो किसी मंदिर में बैठा है। जीवन का अनुभव यही बताता है कि कितना भी प्राप्त कर लो, तृप्ति नहीं होती इसलिए मैंने ये तीन बिन्दु बताएं हैं । उन्मुक्त जीवन के लिए, अपनी आजादी को बढ़ाने के लिए ये सूत्र जीवन के हर काम पर स्मरण रखो। बस, इतना काफी है।
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