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अपना प्रांचल फैलाएं
जिसका जितना अांचल होगा, उसको उतनी ही सौगात मिलेगी। अगर किसी को सौगात कम मिल रही है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि सौगात कम है। सौगात तो भरपूर बरस रही है । सौगात प्राप्त करने वाले का प्रांचल ही छोटा है। परमात्मा का अमृत तो दिन-रात, आठों-याम, प्रति-पल बरस रहा है, लेकिन हमारा आंचल ही इतना छोटा और संकुचित है कि आकाश से बरसने वाला अमृत हमारे अांचल में आ ही नहीं पाता ।
व्यक्ति की आंखें बंद हों तो सूरज उगने और भोर होने के दृश्यों का अवलोकन कैसे कर पाएगा? सूरज तो रोज उगता है,
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