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________________ जागे सो महावीर मरते वक्त यह कामना की थी कि 'मैं इस जन्म में वैज्ञानिक अवश्य बना, पर अगले जन्म में मैं कोई आध्यात्मिक पुरुष बनूँ। __जिसे जाने बिना हजारों सत्य बेमानी रहते हैं, उसी जीवन का नाम अध्यात्म है। भगवान का आज का सूत्र व्यक्ति को उसी अध्यात्म से जोड़ रहा है। वह उसे पदार्थ से, भूत-महाभूत तत्त्व से ऊपर उठाते हुए आत्म-सत्य से रूबरू करवा रहा है। भगवान कहते हैं - आरूहवि अंतरप्पा, बहिरप्पा छंडिऊण तिविहेण। झाइज्जइ परमप्पा, उवइटें जिणवरिंदेहिं। भगवान कहते हैं, 'तुम मन-वचन-काया से बहिरात्मा को छोड़कर अन्तरात्मा में आरोहरण कर परमात्मा का ध्यान करो।' भगवान ने हर किसी व्यक्ति के समक्ष इस सूत्र के माध्यम से ध्यान की स्थिति स्पष्ट कर दी है। ऐसा नहीं है कि हम हर स्थिति-परिस्थिति में परमात्मा का ध्यान लगा सकते हैं। हम ऐसा दुस्साहस करते हैं तो हम ध्यान धरेंगे परमात्मा का और ध्यान धरते-धरते परमात्मा तो कहीं दूर छिटक जाएगा और हम अपने किसी प्रिय-अप्रिय का ध्यान करने लगेंगे। हम ध्यान तो धरेंगे किसी धर्म का, मगर ध्यान केन्द्रित हो जाएगा धन्धे पर। इसीलिए भगवान ने अपने इस सूत्र द्वारा हमारे लिए साधना का पथ, ध्यान का मार्ग, कैवल्य और समाधि का रास्ता प्रशस्त किया है। ___एक इटैलियन दम्पत्ति मेरे पास बैठी थी। बता रही थी कि हम दोनों रोजाना ध्यान करते हैं। जब उनसे पूछा गया कि किसका ध्यान करते हैं, तो जवाब मिला, मैं इनका और वो मेरा। ___ यह सब बहिरात्म-भाव है। अंखियों के झरोखों से, मन-ही-मन देखी गई बातें हैं। जब आसक्ति ही देह के प्रति है, एक-दूसरे के प्रति है, तब परमात्मा का क्या खाक ध्यान करोगे? अगर हम इस सूत्र को गहराई से समझेंगे तो हमारे समक्ष महावीर का ध्यान का मार्ग और उनकी साधना-दृष्टि सहज ही स्पष्ट होती चली जाएगी। इस सूत्र के माध्यम से महावीर ने साधना के तीन सोपान बताए हैं। पहला सोपान है - मनवचन-काया से बहिरात्म-भाव का त्याग; दूसरा- अन्तरात्मा में आरोहण और तीसरा- परमात्मा का ध्यान। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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