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साधना की अन्तर्दृष्टि
जिन ज्ञानी पुरुषों ने जीवन को गहराई से जाना है, उनके लिए जन्म न तो जन्म है और मृत्यु न ही मृत्यु । ज्ञानीजनों के लिए तो जन्म और मृत्यु पथिक का दृष्टांत मात्र होता है। मैं जीवन को बहुत गहराई से देख रहा हूँ और मैं जानता हूँ कि जैसा जगत है, वैसा ही जीवन है और जैसा जीवन है, वैसा ही जगत। जैसा बीज होता है वैसा ही बरगद होता है और जैसा बरगद होता है, वैसा ही उसमें छिपा हुआ बीज रहता है। ___ व्यक्ति का अपनी आँखें बाहर की ओर खोलना तथा जगत के दृश्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना विज्ञान है जबकि उसका बहिर्दृष्टि को त्याग कर भीतर की ओर अपनी दृष्टि मोड़ना ही अध्यात्म है। जब व्यक्ति यह जान लेगा कि विज्ञान और अध्यात्म में कोई दूरी नहीं, कोई विरोधाभास नहीं है, उस दिन विज्ञान और अध्यात्म में प्रगाढ़ मैत्री स्थापित हो जाएगी।
विज्ञान पदार्थ की खोज करता है और अध्यात्म चेतना की, जिससे पदार्थ गतिशील होता है। विज्ञान पास से दूर हो जाता है और अध्यात्म दूर से पास लाता है। संसार भर के सारे सत्यों का आविष्कार करने के बाद व्यक्ति को इस आत्मसत्य की शरण में तो आना ही पड़ेगा। इस बात को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि जिसके चलते मैं जीवितहूँ और जिसके निकल जाने के बाद मैं मृत समझा जाऊँगा, वह आत्म-तत्त्व ही अध्यात्म की बुनियाद है। __विश्व के महानतम वैज्ञानिकों में एक हुए हैं अल्बर्ट आइंस्टीन। आइंस्टीन ने विज्ञान से जुड़े हजारों सत्यों का उद्घाटन किया। कहते हैं कि जब वे मृत्युशैय्या पर थे तो उनसे यह प्रश्न किया गया कि वे अपने अगले जन्म में क्या बनना पसंद करेंगे? उन्होंने उत्तर दिया, 'मैं अगला जन्म या पुनर्जन्म तो नहीं जानता, पर मैं चाहता हूँ कि यदि मेरा अगला जन्म होता हो तो मैं कोरा वैज्ञानिक न बनूँ।' उनके इस उत्तर से सम्पूर्ण विज्ञानजगत अचंभित रह गया कि जिस व्यक्ति ने अपना सम्पूर्ण जीवन ही विज्ञान के लिए समर्पित कर दिया, वह वैज्ञानिक क्यों नहीं बनना चाहता?
तब उनके पास मीडिया से जुड़े हुए लोग पहुँचे। उन्होंने उनसे पूछा कि आपके इस प्रकार के उत्तर का क्या कारण है? आइंस्टीन ने जवाब दिया, 'मैंने भले ही विज्ञान से जुड़े हुए अनेक सत्यों को उद्घाटित किया हो, पर मैं वह तत्त्व नहीं खोज पाया जिसके निकल जाने के बाद तुम मुझे मृत कहकर दफना दोगे। आइंस्टीन ने
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