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________________ सम्यक्त्व की सुवास औचित्य ? मैं तिरूँ, आप तिरें और हर व्यक्ति इस संसारसागर से पार लगे । और पार लगने के लिए जो नौका या पतवार के रूप में आधार है, वह है सम्यक् दृष्टि और सम्यक् बोधि । सुबह उठकर भगवान से यदि कोई प्रार्थना की जाए तो वह यह हो कि 'हे प्रभु! मेरी बुद्धि सदा सद्बुद्धि रहे । यदि तेरी तरफ से मुझे कुछ मिले तो वह मात्र सम्यक् बोधि हो । मुझे वह दृष्टि प्रदान करें जिससे मैं जीवन का सही मार्ग तय कर सकूँ और संसार - सागर के पार लग सकूँ ।' ७७ हाँ, मंजिलें उनकी होती हैं जो रास्तों को पार करना जानते हैं । और रास्ता पार करने की हिम्मत या औकात वही जुटा पाते हैं जो सम्यक्त्व के स्वामी होते हैं । आज के लिए अपनी ओर से बस इतना ही । प्रेमपूर्ण नमस्कार । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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