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जागे सो महावीर
'मैंने अपने जीवन में कुछ भी ऐसा अच्छा नहीं किया जो मैं बता सकूँ।' मैंने कहा, 'अरे! तुम तो लोगों को सुकून देते हो, खुशबू देते हो, रोजी-रोटी देते हो।' पेड़ से भी यही प्रश्न मैंने किया। पेड़ ने जवाब दिया, 'मेरे जीवन मे कर्ताभाव नहीं है। जो होना है, वही हो रहा है। फूल और फल देना मेरा धर्म है। छाया और हवा देना भी मेरा स्वभाव है, इसमें अच्छा और बुरा क्या है ?' .
पेड़ ने मुझसे कहा, 'याद रखो बेटे ! जो किया जाता है, उसका इतिहास लिखा जाता है और जो हो जाता है, वह व्यक्ति का स्वभाव होता है।'
इतिहास मिट जाया करता है। इतिहास के पन्नों पर सदा किसका नाम अंकित रहा है? एक साधारण व्यक्ति को छोड़ भी दिया जाए, पर एक तीर्थंकर का नाम भी तीन चौबीसी तक ही चलता है। जरा बताइए कि वासुपूज्य स्वामी की माता का नाम क्या था? अजितनाथ भगवान का विवाह हुआ या नहीं? अथवा ऋषभदेव के सौ पुत्रों के क्या-क्या नाम थे? शायद ही किसी को ध्यान में हों।
जहाँ व्यक्ति कर्ताभाव से जुड़ता है, वह वहाँ स्वयं को इतिहास की धरोहर बना देता है। पर इतिहास के पन्नों पर भी नाम मिटते रहते है। यह सामने जो मैं शिला पर नाम लिखा देख रहा हूँ, कितने साल तक यह नाम चलेगा? पचास सौ वर्षों तक ! उसके बाद इसका भी पता नहीं रहेगा। यह बिल्डिंग जो दिख रही है, उसकी उम्र भी कितनी होगी? चाहे तुम लोहे भी लगवा दो, सौ वर्ष से ज्यादा तो आर. सी. सी. की उम्र भी नहीं होती। हम होनी की तरफ आएँ, अपने स्वभाव से जुड़े।ज्यों-ज्यों व्यक्ति में कर्ताभाव कम होता जाएगा त्यों-त्यों वह अपने आत्मस्वभाव में स्थिर होता चला जाएगा। जानें अपना स्वभाव कि हमारे भीतर क्या है ? भीतर कितना क्रोध है, कितनी शान्ति? भीतर कितनी पवित्रता की स्थिति है
और कितने विकार हैं ? व्यक्ति स्वयं का हर पल आत्मदर्पण में निरीक्षण करे, स्वयं के प्रति सम्यक्त्व का, विवेक और हंसदृष्टि का उपयोग करे।
मेरे भीतर अच्छा क्या है, बुरा क्या है ? अच्छे को मैं कैसे बढ़ाऊँ और बुरे से कैसे बचूँ? व्यक्ति अपनी सम्यक् बोधि का उपयोग स्वयं को जानने और सुधारने के लिए करे।
मेरा निस्तार मैं करूँगा और आपका निस्तार आप करेंगे। हर व्यक्ति अपने ही प्रयत्नों और पुरुषार्थ से पार लगेगा। मेरे साथ यदि दस व्यक्ति और तिरते हैं तो अच्छी बात है पर यदि सौ व्यक्ति तिरें और मैं डूबा रह जाऊँ तो इसका क्या
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