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सम्यक्त्व की सुवास
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जाए, आसक्ति को कम किया जाए, उतना ही अच्छा है। तम अपने बेटे पर राग करते हो लेकिन वह तो शादी होते ही तुमसे अलग हो जाएगा।
भगवान अनुद्वेग की स्थिति को लाने के लिए यह सूत्र दे रहे हैं - वीतराग, वीतद्वेष और अन्तरद्वन्द्वता से मुक्त होने की स्थिति वही है, जहाँ व्यक्ति सब के बीच रहकर भी सबसे अलग रहता है।
एक बहुत ही प्यारी जापानी कहानी है। जापान में एक परम्परा चली- झेनपरम्परा। इस परम्परा में दो संत हुए। एक ईकिडोऔर दूसरातानज़ेन। झेन कहानियाँ बहुत ही रहस्यमयी और गहरी होती हैं। यदि कोई व्यक्ति ऊपर-ऊपर से इन कहानिचों को लेता है तो वह इनकी गहराइयों को नहीं समझ सकता। ईकिडो गुरु
और तानेन चेला, ईकिडो वृद्ध और तानज़ेन युवा। दोनों ही एक मड्डी रास्ते से अर्थात् कीचड़ से लथपथ रास्ते से आगे बढ़ते जा रहे थे। संभवतः बरसात के कारण वह रास्ता कीचड़ से लथपथ हो गया था। कुछ दूर आगे चलने पर एक नदी आई जिसे ईकिडो और तानजेन को गंतव्य तक पहुँचने के लिए पार करना था। ईकिडो आगे थे। जैसे ही वह नदी को पार करने लगे तभी वहाँ खड़ी एक लड़की ईकिडो से बोली, 'संतप्रवर ! मुझे भी यह नदी पार करनी है, पर पानी की गहराई अधिक है और मेरा कद भी छोटा है। साँझ भी ढल रही है, अतः मैं उस पार पहुँच जाऊँ यह उपयुक्त रहेगा। आप कृपया मुझे हाथ पकड़कर अपने साथ ले चलें ताकि मैं उस पार सुरक्षित रूप से पहुँच सकूँ।'
ईकिडो ने उस बालिका की बात सुनी तो वह बोले, 'मैं अवश्य ही उस पार जा रहा हूँ, पर हम संत किसी स्त्री को नहीं छू सकते।' यह कहकर वह आगे बढ़ गए और नदी पार कर ली। तानसेंग भी पीछे-पीछे आ रहे थे। जब उस लड़की ने तानज़ेन को देखा तो उसने उसको भी अपनी वही परिस्थिति सुना कर नदी पार करने के लिए निवेदन किया। तानजेन ने उस लड़की की परिस्थिति को समझा
और उसने हाथ पकड़ कर लड़की को नदी पार करा दी। नदी पार करने के बाद लड़की अपनी राह पर और तानजेन अपनी राह पर चल दिए।
रास्ते में तानजेन ने अनुभव किया कि ईकिडो कुछ नाराज से लग रहे थे। उन्होंने तानज़ेन से एक शब्द भी नहीं बोला। रात्रि को जब दोनो संत सोने के लिए
अपने बिस्तर पर लेटे तो ईकिडो तानजेन से बोले, 'बेटा ! तूने आज अच्छा नहीं किया। तेरे द्वारा आज संतजीवन की मर्यादा का अतिक्रमण हुआ है। तूने न केवल
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