SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जागे सो महावीर यदि बैठा जाए तो समस्या हो जाती है, वैसे ही यहाँ पर भी किसी की जगह पर बैठ तो जाओ, तुरन्त कहा-सुनी हो जाएगी। एक बार ऐसा हुआ कि एक व्यक्ति बस से यात्रा करना चाहता था। वह बस में पहुंचा तो उसे पता लगा कि अभी बस चलने में आधा घण्टा समय है। उसने सोचा कि कोई बात नहीं, अपनी सीट पर रूमाल बिछा देता हूँ और जब तक बस का ईंजन स्टार्ट न हो तब तक नीचे ही घूम लेता हूँ। आधे घण्टे बाद जैसे ही बस स्टार्ट हुई, वह व्यक्ति ऊपर चढ़ा। उसने देखा कि उसकी सीट पर कोई दूसरा आदमी बैठा हुआ है। वह उस व्यक्ति से बोला, 'अरे, उठो, यहाँ से। यह मेरी सीट है।' वह व्यक्ति बोला, 'तुम्हारी सीट कैसे? यह तो लोहे की सीट है और इस पर जो बैठ जाए, यह तो उसी की हो जाती है।' जो आदमी नीचे उतरा था, वह बोला, 'अरे, बड़े विचित्र व्यक्ति हो, मैंने मेरा यहा रूमाल बिछा रखा था और यह मेरी सीट है। दूसरे आदमी ने जेब से रूमाल निकाल कर उसे देते हुए कहा, 'क्या सीट पर रूमाल बिछा देने से सीट तुम्हारी हो गई? कल तुम ताजमहल पर रूमाल बिछा दोगे तो क्या ताजमहल तुम्हारा हो जाएगा? __ व्यर्थ की मूर्छा, आसक्ति और राग। जहाँ रूमाल बिछाकर व्यक्ति सीट को अपनी मान लेता है। आसक्ति तो बाधंती ही है। व्यक्ति का स्वभाव आईने की तरह हो। जैसे यदि तुम आईने के सामने जाओगे तो वह तुम्हें तुम्हारा रूप दिखाएगा। तुम हँसोगे तो वह भी हँसेगा, तुम रोओगे तो वह भी रोएगा और यदि तुम दाँत निकालोगे तो वह भी दाँत निकालेगा। तुम आईने से दूर हटे तो आईना वैसा ही स्वच्छ और निर्मल हो जाएगा जैसे कि वह तुम्हारे आने से पहले था। ___ कोई आता है तो उससे मिलो-जुलो और प्रेमपूर्वक व्यवहार करो। उसका स्वागत और सम्मान करो। पर तुम्हारा व्यवहार बिल्कुल उस आईने की तरह हो जो सामने आने पर तो सब कुछ प्रतिबिम्बित कर देता है और दूर हटते ही वैसा हो जाता है जैसा वह पहले था। एक संत का, एक श्रावक और शांतचित्त व्यक्ति का स्वभाव बिल्कुल आईने की तरह हो जो निर्लिप्त होता है। कोई आ गया तो भी मौज, अकेले हैं तो भी मौज। साथ-साथ में भी मस्ती और आनन्द और अकेले में भी ही अपनी मस्ती और आनन्द। आज के जमाने में जितनी निर्लिप्तता रखी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy