________________
हम ही हों हमारे मित्र
दूसरा गाल भी उसके सामने कर दो। महावीर के कान में कील ठुके तो महावीर की प्रतिक्रिया यही थी कि कील ठोकने वाले ने मेरी समता और सहनशीलता को और बढ़ा दिया है। कृष्ण ने शिशुपाल की निन्यानवे गलतियों को माफ करने की उदारता ही तो दिखाई थी।
कटु वाणी मत बोलो। प्यार से बोलो। हमारी जबान लोगों के लिए प्रेम और सम्मान का माध्यम बने, न कि कटुता और विरोध की। हम वाणी में मधुरता लाएँ। मधुरता को अपने जीवन का अंग बनाएँ। यह बड़ा पौष्टिक तत्त्व है। तुम अपनी ओर से औरों को मधुरता दांगे तो तुम्हें भी मधुरता ही मिलेगी। __ मन में सदा प्रसन्नता रखो। जीवन की हर उठापटक के बाबजूद अपने दिल को सदा मजबूत रखो, प्रसन्न रखो। निराशा हटाओ, विश्वास जगाओ। दूरियों को कम करो, सबको अपने गले लगाओ। प्रेम को जगत् के लिए स्वीकार कर लो। बाहर अनन्त तक प्रेम, अनन्त प्रेम ! भीतर अनन्त का ध्यान, अनन्त ध्यान ! __ हम ही हमारे मित्र हों और हम ही हमारे मार्गदर्शक गुरु बनें। स्वयं के हाथों स्वयं को मूल्य दें और उस मूल्य को हासिल करें। आत्म-पथ पर चलने के लिए द्वार खुले हैं। अंधेरा मिटने वाला है; आज, अभी, निश्चय ही।
000
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org