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जागे सो महावीर
लाखों सन्नारियों के माथे के सिन्दूर से होली खेली है, तुमने लाखों बहिनों की राखियाँ छीन ली हैं और तुमने लाखों माताओं की गोद सूनी कर दी है। तुम अपना विजय-उत्सव मनाने से पहले इन घायलों की कराह तो सुन लो।' इससे बढ़कर जीवन का और दूसरा कोई कल्याण-पथ नहीं है।
तब सम्राट अशोक एक-एक घायल के पास जाता है। घायल कहते हैं, 'सम्राट अशोक, तेरा विनाश हो, तेरा यश मिट्टी में मिल जाए। तूने हम निरपराध लोगों के साथ अत्याचार किये हैं।' वहाँ का करुण दृश्य देखकर और घायलों की करुण चीत्कारों को सुनकर सम्राट का हृदय परिवर्तित हो जाता है। तब कलिंग के उस मैदान में एक नया उद्घोष गुंजायमान होता है। वह उद्घोष युद्ध का नहीं, बल्कि अहिंसा और अयुद्ध का होता है। सम्राट अशोक में ऐसा परिवर्तन होता है जिस पर स्वयं अहिंसा को भी नाज है। शायद सौ और युद्ध करके भी सम्राट अशोक भारत के इतिहास के उस गौरवममय पद को नहीं पाते जितना उन्होंने युद्ध का त्याग कर, प्रेम और शांति के संदेश को संसार-भर में फैलाकर वे भारत के गौरव-मुकुट बने। ___ आखिर यह दुनिया कब तक लड़ती रहेगी? कब तक हम आपस में झगड़ते रहेंगे? आज कितना आतंक और उग्रवाद फैला हुआ है ! आखिर इन सबका क्या अंत होगा? आदमी कहीं तो ठहरे ! कहीं तो रुके ! चौराहे की लाल बत्ती को देखकर ही सही, कभी तो सँभले! बहुत हो गए झगड़े, बहुत हो गई सिर फुटव्वल। हमें जीतना है अपने ही कमजोर मन को, अपने ही उग्र मन को। अपने आपको जीतना ही जीवन की सच्ची विजय है। तुम अपने कषायों पर विजय प्राप्त करो। अपनी इन्दियों पर विजय प्राप्त करो। अपने निरंकुश मन पर शासन-अनुशासन स्थापित करो। जैसे ही लगे कि हमसे अतिक्रमण हो गया, तत्काल अपने आपको अपनी मर्यादा में ले आओ। यही प्रतिक्रमण है। अपनी मर्यादा में स्वयं का लौट आना ही प्रतिक्रमण है।
लड़ो किन्तु अपने आप से। यदि बाहरी शत्रुओं को भी नियंत्रण में लेना हो तो उन्हें भी प्रेम, आत्मीयता और मधुरता से वश में करो। लड़ाई से बचने के लिए हम नम्रता का विकास करें। सामने वाला 'सॉरी' कहे, उसके पहले ही हम स्वयं ही सॉरी कह दें। बात वहीं खत्म हो जाएगी।
जीसस तो कहते हैं कि कोई तुम्हारे एक गाल पर चाँटा लगा दे तो तुम अपना
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