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________________ ५२ जागे सो महावीर उमड़ने दो, हर किसी के प्रति दया, करुणा और सौहार्द से भर जाओ तो वे चंद पल तुम्हें और तुम्हारे संसर्ग में आने वाले हर व्यक्ति को इस कदर पुलकित कर देंगे जैसे एक नन्हा बालक, माँ के आँचल में दुबककर आह्लादित होता है। जब-जब व्यक्ति काम, क्रोध, वैर, विषय-वासना, विरोध, घृणा, हिंसा, वैमनस्य से स्वयं को भरता रहता है तब तक वह उन क्षणों में स्वयं का स्वयं ही शत्रु बन जाता है। ___एक पुरानी कहानी है कि एक बार एक राजा शिकार करने गया। शिकार करते-करते वह थक गया और एक पेड़ की छाँव में आकर सुस्ताने लगा। वह जैसे ही आँख बंदकर सोने का प्रयास करने लगा, तभी एक मक्खी उस पर भिनभिनाने लगी। मक्खी की भिनभिनाहट से राजा बहुत परेशान हो उठा। वह उसे आँखों पर से भगाता तो वह कान पर जाकर बैठ जाती, कान से भगाता तो अन्यत्र कहीं बैठ जाती। हो सकता है मक्खी राजा को दुलार से लोरी सुना रही हो, पर राजा के लिए तो वह दुश्मन से कम न थी। इसलिए सावधान ! किसी व्यक्ति के पीछे यह सोचकर मत पड़ जाना कि तुम उसे खुशी दे रहे हो, जबकि वह सोचता हो कि इससे मेरा जल्दी पीछा छूटे । राजा ने बहुत हैरान-परेशान होकर अपनी तलवार निकाल ही ली और सोचने लगा कि अब की बार मक्खी जैसे ही बैठेगी, उसे काट ही डालूँगा। मक्खी फिर उड़ी और जाकर राजा की नाक पर बैठ गई। अब तो राजा का क्रोध सातवें आसमान पर जा पहुँचा। व्यक्ति नाक को तो अपनी इज्जत मानता है। उसने क्रोध में आकर अपनी तलवार, नाक पर बैठी हुई मक्खी पर चला ही दी। मक्खी तो उड़ गई और राजा की नाक कट गई। हम भी तो काम-क्रोध, कषाय और विकारों में न जाने कितनी ही बार अपनी नाक काट चुके हैं, स्वयं को हानि पहुँचा चुके हैं। तुम अपने शत्रु तो मत बनो। किसी और के शत्रु बनोगे तो शायद कालक्रम में मित्र भी बन जाओगे। यह शत्रुता शायद क्षम्य भी हो। आओ, हम एक ऐसा वातावरण तैयार करें जहाँ हम स्वयं के मित्र हों, हम अपनी आत्मा को सद्प्रवृत्तियों में स्थित करें और दुष्प्रवृत्तियों की ओर गतिमान होकर स्वयं के शत्रु न बनें। यह फैसला हमारे ही हाथ में है कि हम स्वयं के शत्रु बनें या मित्र। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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