________________
जागे सो महावीर
किसी शव में और तुम्हारे में जो अन्तर है, उसका एकमात्र कारण आत्मतत्त्व है। जो मर गया है, उसका शरीर भी वैसा ही है जैसा पहले था। हाथ-पाँव, आँख-नाक, हृदय-फेफड़े सब दिखने में ठीक हैं, पर क्या कारण है जो शरीर के इन सभी अवयवों ने अपनी गतिविधियाँ बंद कर दी हैं? इसका कारण यह है कि उसके शरीर में वह तत्त्व नहीं रहा जो शरीर को या उसके सभी अवयवों को ऊर्जा देता है । श्रीमद् राजचन्द्र ने 'आत्मसिद्धि' में गुनगुनाया है - 'आत्मानी शंका करे आत्मा पोते आप' अर्थात् आत्मा स्वयं ही अपने अस्तित्व की शंका करती है। वह खुद को खोजना चाहती है, कल्याण करना चाहती है। कितना बड़ा आश्चर्य !
४६
व्यक्ति बंधन में है क्योंकि उसे अभी तक समझ नहीं मिली है। वह मुक्त नहीं हो पाया क्योंकि वह अपनी ही भ्रांतियों की जंजीरों में जकड़ा है। व्यक्ति अब तक अपनी मंजिल नहीं पा सका क्योंकि उसने मूर्च्छा के लंगर नहीं खोले । व्यक्ति दो पल के लिए भी एकांत में बैठकर, अपनी पलकों को झुकाकर भीतर निहारे तो वह पाएगा कि उसके भीतर विचारों की उथल-पुथल मची है। आखिर इन विचारों का जन्मदाता कौन है ? तब उसे लगेगा कि मन या मस्तिष्क ही इन विचारों को पैदा कर रहा है; पर मन या मस्तिष्क को कौन संचालित कर रहा है, कौन उसे ऊर्जा दे रहा है ? वह आत्मा ही तो है । हमारी हर वेदना या संवेदना का हमें आभास देने वाला, हमारी हर क्रिया को संचालित करने वाला, वह हमारे भीतर बैठा देवता ही तो है ।
धरती पर दो तरह के देवता माने जाते हैं । एक तो वह जो यहाँ से दूर किसी आसमान में बैठा सृष्टि को संचालित करता है । दूसरा वह जो हम सब के भीतर विराजमान है और हम सबका स्वतंत्र संचालन करता है । हर अस्तित्व के साथ राम जुड़ा है, हर अस्मिता के पीछे कृष्ण हैं और हर चेतना का प्रतिनिधित्व महावीर करते हैं। व्यक्ति स्वयं ही अपना राम है, स्वयं ही स्वयं का कृष्ण और महावीर है । राम, कृष्ण और महावीर कहीं दूर या कोई दूसरे नहीं हैं ।
जब भी व्यक्ति के समक्ष ऐसे निमित्त आते हैं जो उसके भीतर सोए हुए महावीर से उसे मुखातिब करा दें तो वह महावीर को किसी मंदिर में नहीं खोजेगा । जब तक व्यक्ति की चेतना दुबकी हुई है, तभी तक व्यक्ति महावीर, कृष्ण, राम, जीसस और नानक को किसी मंदिर, चर्च और गुरुद्वारे में ढूँढता रहेगा । जरा ईमानदारी से तुम दो पल के लिए पलकें झुकाकर अंदर देखो कि मैं कौन हूँ? मेरा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org