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________________ साधना राग की, प्रार्थना वीतराग की सवार हो गया। आश्चर्य उसे तब हुआ जब उसने उस कुर्सी पर दूसरे आदमी को बैठे देखा, जिस पर उसने रूमाल बिछाया था। उसने पूछा, 'भाई साहब! यहाँ तो मैं रूमाल बिछाकर गया था। फिर आप कैसे बैठे?' कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने उसे उसका रूमाल देते हुए कहा कि रूमाल बिछाने से जगह किसी की थोड़ी हो जाती है। कल को आप ताजमहल पर रूमाल बिछाकर कहेंगे, ताजमहल मेरा हो गया। ममत्व का आरोपण...! ताश खेलो तो ताश के पत्ते के चिड़िया-बादशाह भी तुम्हें अपने लगेंगे। शतरंज या चैश खेलो तो तुम्हें उसकी गोटियों में हाथी-घोड़े लड़ते-लड़ाते, मरते-मारते नजर आएँगे। मैं तुम्हें बता देना चाहता हूँ कि संसार के सारे खेल ताश के पत्तों की तरह ही हैं। घड़ी में हम ताश के पत्ते फैलाते हैं और घड़ी में ही उन्हें समेट लेते हैं। ___कोहीनूर हीरे के लिए न जाने अब तक कितनी लड़ाइयाँ हुई हैं! कितनी सेनाएँ मरी-मिटी हैं। इसने उससे छीना, उसने इससे छीना। इस छीनाझपटी में अनगिनत लोगों की जानें गई हैं। नासमझ लोग नाशवान् चीजों के लिए भी लड़ते हैं। समझदार नश्वर को नश्वर समझकर उससे निरपेक्ष रहता है। ___ जीवन में व्यर्थ के तनावों से, चिन्ताओं से, वैर-विरोध और वैमनस्य से बचने के लिए एक अकेला सर्वकल्याणकारी दृष्टिकोण है- 'भावे विसोगो, मणुओ विसोगो।' जो भाव से विरक्त है, निरपेक्ष है, वह शोकमुक्त हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे कमलिनी के पत्ते जल से, दलदल से मुक्त हो जाते हैं। ___ यही है मार्ग मुक्ति का, आध्यात्मिक शांति और संबोधि का। हमारे कदम, हमारी नजर राग से विराग की ओर ही नहीं बल्कि वीतराग, वीतशोक होने की ओर हो। ऐसा नहीं कि प्रार्थना हो योग की और भावना हो भोग की ! भावना और प्रार्थना, कार्य और कामना - दोनों में सन्तुलन हो, दोनों अध्यात्म की लय लिये हों। मन और मन की अभिव्यक्ति दोनो में एकरूपता, दोनों में मुक्ति की तरंग हो। 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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