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जागे सो महावीर
एक घर में आप सभी दादा, दादी, बेटा, बहू मिलकर रहते हो । रात होती है तो दादा अपनी जगह चले जाते हैं, दादी अपनी जगह, बेटा-बहू अपने कमरे में चले जाते हैं, और बच्चा अपने कमरे में। सब अलग-अलग हो जाते हैं । व्यक्ति जब तक सपने में रहता है तब तक उसे सब अपने लगते हैं। यूँ तो व्यक्ति एकदम अकेला है। सुबह होने पर सब अपने साथ मिलते हैं, नाश्ता करते हैं, और अपनीअपनी मंजिल की ओर निकल जाते हैं। यह सब तो मात्र व्यवस्थाएँ हैं, संयोग हैं, जिन्हें व्यक्ति अपने मानने की भूल करता है ।
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यह मात्र संयोग है कि मैंने इस माँ की कोख से जन्म लिया। हो सकता है कि आज यह जो छोटी-सी बच्ची है, कभी वह मेरी माँ रही हो । जिस कुत्ते को हम दुत्कार कर भगा देते हैं, वह किसी जन्म में हमारा दादा या अन्य कोई रिश्तेदार रहा हो। जन्मों की इस अनन्त धारा में न जाने हम कितने लोगों से जुड़े - बिछुड़े हैं, कहा नहीं जा सकता । फिर किसके प्रति नफरत, जब सब ही किसी-न-किसी जन्म में अपने सम्बन्धी रह चुके हैं। इसलिए सभी के प्रति प्यार या सभी के प्रति उदासीनता रखें, क्योंकि या तो सभी अपने हैं या सभी पराये ।
व्यक्ति का कोई भी अपना तब तक ही होता है, जब तक कि वह आत्मनिर्भर न हो जाए। एक पक्षी अपने घोंसले में तब तक ही रहता है, जब तक कि उसके पंख न निकल आएँ। पंख निकलते ही वह नीड़ छोड़कर मुक्त गगन में उड़ जाता है। बेटा भी माँ-बाप को तब तक ही निभाता है, तब तक ही उनके साथ रहता है जब तक कि उसकी शादी न हो जाए, वह आत्मनिर्भर न हो जाए। उसके बाद तो उसका संसार सिमट जाता है। बस, मियां, बीवी और बच्चे । यहाँ कोई किसी को नहीं निभाता, मात्र कर्म ही व्यक्ति को निभाता है । यदि तुम्हारे कर्म अच्छे हैं तो तुम जंगल में भी मंगल कर लोगे और यदि तुम्हारे कर्म ही बुरे हैं तो तुम्हारी हजार व्यवस्थाएँ भी निष्फल चली जाएँगी।
मैं लोगों को कहता हूँ कि मैं सन्त बना, मैंने घर-परिवार सब कुछ छोड़ा, पर एक चीज सदा के लिए साथ में लाया हूँ और वह है मेरी किस्मत, मेरे कर्म । यदि मेरी किस्मत अच्छी है तो मुझे जंगल में भी छोड़ दिया जाए, तो वहाँ पर भी मैं कुछ सुन्दर फूल खिला लूँगा । यदि किस्मत ही खराब है तो स्वर्ग भी कबाड़खाना बन जाएगा। इसीलिए महावीर ने कहा कि 'कर्म कर्ता का अनुगमन करते हैं ।' व्यक्ति
साथ उसके कर्म रहते हैं । व्यक्ति जब-जैसे भाव करता है तब - वैसे कर्म का बन्धन करता है। उदय आने पर व्यक्ति उन कर्मों को भोगता है। अन्य व्यक्ति उस
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