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________________ २२ जागे सो महावीर महिला को स्वर्ग प्रदान करने का फैसला सुनाया गया और मठाधीश को नरक प्रदान करने का। धर्मराज के फैसले से दोनों ही चौंक पड़े। महिला ने कहा, 'सर ! आपसे कहीं कोई चूक हुई है। मैं, पापिनी ! और स्वर्ग की अधिकारिणी? मठाधीश, नरक के अधिकारी? महाराज, आपने बही-खाते उल्टे पढ़ लिये हैं। नरक तो मेरे लिए है।' धर्मराज ने कहा, 'माफ करना बहिन ! हमारे न्यायालय में कार्य से पहले मन की दशा को पढ़ा जाता है। तुम मजबूरी के कारण देह-व्यापार करती थी, पर हर समय तुम्हारे मन में तुम्हारे पाप-कृत्य के लिए प्रायश्चित होता था। तुम रोजाना सोचती थी कि धन्य है मठाधीश, जो धर्मपथ पर चलकर पवित्रता से जीवन जीता है। पर तुम यह नहीं जानती थी कि मठाधीश के मन के कर्म कैसेथे? मठाधीश जब भी तुम्हारे द्वार पर किसी को आते-जाते देखता तो उसके मन में होता कि मैं अगर मठ की सीमा में न होता तो मैं भी इस महिला के यहाँ आता-जाता। पर...! मठाधीश मन मसोस कर रह जाता।' ___मठाधीश स्वयं को लज्जित महसूस करने लगा। वह धर्मराज की बात का विरोध न कर सका। उसके मन में प्रायश्चित हुआ। उसकी आँखों से आँसू ढुलक रहे थे। उसके आँसुओं ने मन की गंदगी को धो डाला। महिला ने देखा, स्वर्ग की जिस सीढ़ी पर वह चढ़ रही है, मठाधीश को भी स्वर्ग के रास्ते पर जाने की अनुमति मिल गई है। इसीलिए महावीर ने कहा – 'जब-जब व्यक्ति जैसे-जैसे भाव करता है, उस-उस समय वह वैसे ही शुभ या अशुभ कर्मों का बन्धन करता है।' बिल्ली अपने बच्चे को दाँत से पकड़ती है और एक चूहे के बच्चे को भी। पर दोनों ही पकड़ में उसकी भावदशा में अन्तर रहता है। चूहे का बच्चा जैसे ही दाँत के बीच आया, वह उसे निर्दयता से दबा देती है। पर जब वह अपने बच्चों को पकड़ती है तो उसके भावों में एक वात्सल्य, स्नेह, मातृत्व रहता है। एक जगह मारने का भाव है तो दूसरी जगह बचाने का। एक डॉक्टर जब किसी व्यक्ति का ऑपरेशन करता है तो वह उसकी सम्पूर्ण चीर-फाड़ कर देता है। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के पेट में चाकू घोंपे तो हम उसे हत्यारा और पापी कहते हैं, पर उस डॉक्टर ने तो शरीर की पूरी चीरफाड़ ही कर दी। शरीर के सब अंगों को ही बाहर निकाल दिया तो क्या वह पापी है? नहीं, चाकू घोंपने वाले व्यक्ति के भाव मारने के हैं तो डॉक्टर के भाव बचाने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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