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________________ कर्म, आखिर कैसे करें ? अगर तुम्हारे विचारों में पवित्रता है तो तुम सब के बीच रहकर भी पवित्र रह सकते हो। यदि तुम्हारे विचारों में ही गंदगी है तो तुम कितने ही बाह्य वातावरण से बचे रहो, पर तुम्हारे कर्मों के अनुबन्ध तुम्हारी भावदशा में जारी रहेंगे। इसलिए वह व्यक्ति जिसमें थोड़ी-सी भी जीवन-दृष्टि है, जो अपनी मुक्ति के प्रति जागरूक है, वह सदा अपनी भावदशा के प्रति सजग रहेगा। आप लोग तो कहा करते हैं'भावे भावना भाविए, भावे दीजे दान। भावे जिनवर पूजिए, भावे केवल ज्ञान ।' व्यक्ति अपनी भावदशा से कब मुक्ति के आकाश को छू ले, यह कहा नहीं जा सकता। रस्सी पर नृत्य करते हुए ईलायची कुमार ने निमित्त मिलने पर अपनी भावदशाओं में ही कैवल्य को उपलब्ध कर लिया था। लोगों की दृष्टि में वह कोई नट रहा होगा, पर व्यक्ति की भावदशा व्यक्ति को कहाँ पहुँचा देती है, यह कहा नहीं जा सकता। कोई भरत, माता मरुदेवी को भगवान ऋषभदेव के दर्शन के लिए ले जाता है, पर वह वहाँ पहुँचने से पूर्व ही अपनी उच्च भावदशा से मोक्ष की पहली अधिकारिणी बन जाती है। कोई नागदत्त और कुरगुडुक मुनि संवत्सरी को भोजन करते हुए भी शुद्ध ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं। व्यक्ति अपनी भावदशा में किन कर्मों की निर्जरा कर रहा है, यह उसकी बाहरी दशा/बाह्य क्रिया से नहीं जाना जा सकता। ____ आपलोग जो यहाँ पर बैठे हैं, उनमें से पता नहीं कौन गृहस्थ के वेश में होकर भी संत है। भावों में कौन कब संत बन जाए और कौन-कब गृहस्थ, बाहरी दशा के आधार पर इसका निर्णय नहीं किया जा सकता। बाहर से गिरा हुआ दिखाई देने वाला व्यक्ति भीतर में पहुँचा हुआ हो सकता है। ____ कहते हैं : कुछ साल पहले एक मठाधीशका देहावसान हुआ। योग की बात कि उसी समय एक महिला का भी स्वर्गवास हुआ। महिला का मकान मठाधीश के मठ के सामने ही था। दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने रहते थे। मठाधीश धर्म शास्त्रों की कथाएँ भी बाँचता था। महिला मजबूरी की मारी, देह-व्यापार करती थी। दोनों का एक ही समय में मरना योग की ही बात थी। मठाधीश की अन्येष्टि में पूरा गाँव उमड़ा। हजारों लोग थे। महिला के बारे में सब जानते थे कि वह कैसा जीवन जी गयी? महिला को म्युनिसिपल्टी की गाड़ी ले गयी। मठाधीश के लिए चंदन की चिता सजी। दोनों मरकर आगे की कार्यवाही के लिए धर्मराज की सभा में उपस्थित हुए। धर्मराज ने दोनों आत्माओं के साथ जुड़े हुए मन को पढ़ा और मन की भावदशा के आधार पर स्वर्ग-नरक का निर्णय दिया। वेश्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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