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जागे सो महावीर किस्सा कुर्सी का तुम्हारे साथ भी हो सकता है। मास्टर जी की पुनरावृत्ति तुम पर भी हो सकती है। यहाँ व्यक्ति को 'फूल' बनाने के लिए अप्रेल का इन्तजार नहीं किया जाता, हर दिन व्यक्ति एक-दूसरे को 'फूल' बनाने के इन्तजार में बैठा रहता है। इसलिए किसी सोफे पर बैठो तो उसके पहले अच्छी तरह देख लो कि वहाँ पहले से कुछ गिरा या रखा हुआ तो नहीं है। अन्यथा जैसे ही बैठोगे, चीखकर उसी क्षण उठना पड़ सकता है। संभाव है, वहाँ पहले से ही आलपिन गिरी पड़ी हो। तुम यदि ऐसा करते हो तो तुम्हारा होश और सजगता न केवल तुम्हारी सुरक्षा करते हैं बल्कि यदि वहाँ अन्य कोई जीव है तो उसकी भी प्राण रक्षा हो जाती है और तुम्हारे द्वारा अहिंसा-धर्म का सहजता से पालन हो जाता है।
खाने में भी पूरा होश रखो, अच्छी तरह देखकर ही किसी वस्तु को ग्रहण करो। आजकल तो लोग किराए का खाना खाते हैं। बाजार से बनाया रेडिमेड या फिर नौकरों के हाथ से बनवाकर खाते हैं। मुनिजन लोग उन घरों से आहार ग्रहण नहीं करते जहाँ रसोइयों द्वारा खाना बनाया जाता है, क्योंकि वहाँ शुद्धता नहीं रह पाती। उसे खाने में से इल्ली निकालकर बताओ तो कहेगा जीरा है, मकोड़े का माथा बताओ तो कहेगा, 'अरे साहब ! यह तो इलाचयी का दाना है।' इसलिए जहाँ तक सम्भव हो, खाना स्वयं बनाएँ और यदि बाहर का खाना खा रहे हैं तो बहुत अच्छी तरह देखकर खाएँ। जूते पहनो तो वह भी होशपूर्वक। अच्छी तरह से देख लो कि उसके अन्दर कोई कीड़ा-मकोड़ा तो नहीं है। अगर मकोड़ा होगा तो वह बेचारा तो तुम्हारे पाँव से दबकर मर जाएगा, लेकिन यदि किसी दिन कोई जहरीला बिच्छु रहा तो तुम्हें मरते समय नहीं लगेगा। जूते खोलो तो भी सजगता से, सावधानी से।
हर कार्य विवेकपूर्वक हो। अगर आप सिगरेट पीते हैं तो आपकी मौज, गुटखा खाते हैं आपकी ऐश, पर सदैव ध्यान रखें कि सिगरेट का धुआँ ऐसी जगह न फैलाएँ जहाँ किसी व्यक्ति को दिक्कत हो। गुटखा खाकर पीक हर जगह न थूकें। सार्वजनिक स्थानों को पीकदान न बनाएँ। स्वच्छता पर ध्यान दें। स्वच्छता स्वयं स्वर्ग की जननी होती है।
भगवान ने कहा कि जो व्यक्ति वस्तु के लेने-देने में, मल-मूत्र विसर्जन करने में, बैठने में, चलने-फिरने में, सोने और खाने-पीने में विवेक रखता है, अप्रमत्त रहता है, सजगता और होश बरकरार रखता है वह ही सच्चा अहिंसक है। इसीलिए
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