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जागे सो महावीर
मैं दैनिक जीवन में काम में आने वाली ये छोटी-छोटी बातें कहीं। दैनिक जीवन में रहने वाली अप्रमत्तता और सजगता ही व्यक्ति के लिए साधना के उच्च द्वार खोलती हैं।
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भगवान कहते हैं कि वे धन्य हैं जो सतत आत्मजागृत रहते हैं । वे कभी धन्य नहीं हो सकते जो सोए हैं, मूर्च्छित हैं अथवा प्रमत्त हैं। पहले भी अप्रमत्त लोगों को भगवान की तरफ से धन्यवाद ज्ञापित किया जाता था और आज भी ऐसे अप्रमत्त लोग धन्यवाद के पात्र हैं ।
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पल-प्रतिपल अपनी हर अच्छी-से-अच्छी और बुरी - से बुरी क्रिया के प्रति सजग रहें। आत्म-जागरूकता और सजगता ही मुक्ति का आधार है । महावीर स्वयं जागरण के प्रतीक हैं। आत्म जागरूकता की अलख जगाने के लिए महावीर और बुद्ध दोनों आदर्श साबित हो सकते हैं। राम और कृष्ण का, मोहम्मद और जीसस का अपना मूल्य है, अपना महत्त्व है, पर महावीर का नजरिया इन सबसे अलग, इन सबसे ऊपर है। महावीर कहेंगे-'अप्पा अप्पम्मिरओ।' अपने आप में रमण करो। बुद्ध कहेंगे-'अप्प दीपो भव ।' अपने दीपक स्वयं बनो । कृष्ण कहते हैं ‘उद्धरेत् आत्मना आत्मानम्।' अपनी आत्मा का उद्धार स्वयं करो। मैं कह देना चाहता हूँ कि ये सब श्रेष्ठ पुरुष अंधेरे में रोशनी की तरह हैं।
मूल्य इसका नहीं है कि हम किस राह से गुजर रहे हैं। मूल्य इस बात का है कि गुजर भी रहे हैं या कोरी बातें ही कर रहे हैं। गुजर रहे हैं तो रास्ते के प्रकाशस्तम्भों का मूल्य है। कोरे तारों को गिनने से कुछ न होगा । तारे बहुत गिन लिए, लहरों को खूब देख लिया। अब हम चलें - 'चरैवेति ।' जो चलता है, उसी के लिए सतयुग है, शेष तो कलियुग को भुगत ही रहे हैं ।
महावीर चिराग हैं, उनके लिए चिराग हैं, जो जीवन को उसकी आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ देना चाहते हैं वरना सब कुछ 'जप - माला - पूजा - तिलक' का सान्त्वना भर है।
हम अपने जीवन के प्रति भी जागरूक हों, अपने व्यवहारों के प्रति भी । जगत् के प्रति भी सजग हों और जीवन-जगत के बीच घटित होने वाली घटनाओं के प्रति भी। जो घटित हो, उसके प्रति जागरूक रहें, उसे समझें, मनन करें। जो अनुभव में आए, जो निष्कर्ष निकले, उससे प्रेरणा प्राप्त करें | जिन्दगी से महज गुजरें नहीं, उसे जिएँ । सिर्फ छुएँ नहीं, महसूस करें। सुने नहीं, ग्रहण करें ।
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