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जागे सो महावीर
प्रकृति कभी नियम का उल्लंघन नहीं करती। यह प्रकृति का नियम ही तो है कि जिसके चलते सृष्टि की प्रत्येक व्यवस्था समय पर संपन्न होती है। यदि कोई होलिका किसी प्रह्लाद कोअग्नि में लेकर बैठती है और आग होलिका को जलाती है तो इसका अर्थ यह है कि उस आग में सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ को जलाने की शक्ति है। यदि पानी किसी आग को शान्त करता है तो उसमें सृष्टि की प्रत्येक आग को शान्त करने की शक्ति है। यही तो 'कारण और कार्य का सिद्धान्त' है।
इसी के चलते पृथ्वी पर जो तीसरा दर्शन आया, वह था 'कर्मवाद' । उसके अनुसार सृष्टि का कोई संचालक या नियंत्रक नहीं होता। हर कार्य अपने नियम के अनुसार स्वतः होता है। जैसा करोगे, वैसा भरोगे। यदि तुम अच्छा करते हो तो उसका परिणाम भी अच्छा होगा और और यदि तुम बुरा करते हो तो उसका परिणाम भी बुरा ही मिलेगा। यह तो प्रकृति का सीधा-सा नियम है कि यदि तुम बबूल का बीज बोओगे तो बबूल का ही पेड़ उगेगा, और यदि आम का बीज वपन करते हो तो प्रतिफल आम का पेड़ ही होगा।
इस सिद्धान्त में भी मनुष्य ने अपनी एक मान्यता स्थापित कर दी कि इस जन्म में जो भी अच्छा-बुरा होगा, उसका फल आने वाले जन्म में मिलेगा और आज जीवन काजो स्वरूप है, उसका कारण पिछला जन्म है। इसकी इसी मान्यता के कारण यह भी उतना कारगर सिद्ध नहीं हो पाया, क्योंकि आदमी सोचता है कि यदि आज पाप करने से पैसा मिलता है, बेईमानी करने से सुख-सुविधाओं के साधन सहजता से मिलते हैं तो कल अर्थात् अगला जन्म किसने देखा है? अगले जन्म में चाहे बैल बनें या सांड, तब देख लेंगे, अभी तो खाएँ-पीएँ, आराम करें।
तब एक वैज्ञानिक सिद्धान्त उभर कर आया कि तुम जो आज करोगे उसका परिणाम तुम्हें आज ही मिलेगा और कल तुमने जिस स्थिति को भोगा, वह तुम्हारे द्वारा कल किए गये कार्य का ही परिणाम था। ऐसा नहीं कि मैं बोल रहा हूँ आज और उसका प्रभाव दस वर्ष बाद पड़े। उसका जो प्रभाव पड़ना होगा, वह आज और अभी ही पड़ेगा। यही तो कार्य और कारण का सिद्धांत है। यदि तुम आज सुखी हो तो उस सुख का प्रबन्ध भी तुमने ही किया है और यदि तुम दुखी हो तो अपने दुख के प्रति भी तुम स्वयं ही जवाबदेह हो।
यदि कोई व्यक्ति डाकू या चोर है और गहने जवाहरात चोर कर लाता है, सुखपूर्वक जीवन बिताता है तो ऐसा नहीं है कि उसके पीछे मात्र उसका कोई पुण्य
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