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कर्म, आखिर कैसे करें?
व्यक्ति को अपना माथा झुका देना पड़ता है। आखिर कर्म के आधार पर ही तो नैतिकता के नियमों का संचालन होता है। यह प्रकृति का एक महान् विज्ञान और नियम है जो इस जीवन के पश्चात प्राप्त होने वाले नए जन्म के प्रति आस्थाशील बनाता है और जन्म-जन्मांतर की शृंखलाओं का कारण बनता है। कर्मशास्त्र के अनुसार प्रत्येक कार्य का कारण होता है। यानी 'कॉज एंडइफेक्ट/इम्पेक्ट' साथसाथ चलते हैं।
यदि किसी सती द्रौपदी के पाँच पति होते हैं तो इसके पीछे भी कोई कारण होता है। यदि महासती सीता का निष्कासन किया जाता है तो इसका भी कोई कारण है। यदि सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को चांडाल के घर पानी भरना पड़ता है तो इसके पीछे भी कोई कारण है। मैं कारण पर आपका ध्यान केन्द्रित करूँगा।
आज के जिस विज्ञान ने इतने आविष्कार और विकास किये हैं, उसी विज्ञान का एक नियम 'कॉज एंड इफेक्ट है। इसे ही कारण और कार्य का सिद्धान्त' या 'कर्म-सिद्धान्त' कहा जाता है।
जिस व्यक्ति ने इस सिद्धान्त को नहीं माना, उसका जीवन, जीवन-शैली और जीवन का दर्शन पूर्णतः अवैज्ञानिक ही सिद्ध हुआ। इस धरती पर कारण और कार्य के सिद्धान्त को नकारने वाला जो दर्शन उत्पन्न हुआ, वह चार्वाक का था। उसने कहा- 'न तो कोई आत्मा है, न ही कोई कर्म और न उनका भुगतान।' पुनर्जन्म को अस्वीकारते हुए उसने कहा, 'खाओ, पीओ, मौज उड़ाओ।' 'ऋणं कृत्वा, घृतं पिवेत'। उधार लेकर भी यदि घी पीने को मिल जाए तो कोई हर्ज नहीं, क्योंकि अगला जन्म किसने देखा है। चूंकि इस दर्शन का आधार अवैज्ञानिक रहा, इसलिए इसे नकार दिया गया। ___ दूसरा दर्शन जो इस धरती पर आया वह था 'भक्त और भगवान का' जिसने कर्म को दरकिनार कर दिया और कहा कि तुम अपने जीवन में चाहे कुछ भी कर्म करो, चाहे पुण्य या पाप, उनके साथ यदि स्वयं को तुम भगवान् को समर्पित कर देते हो तो तुम्हारे सभी पाप भगवान् द्वारा माफ कर दिए जाते हैं। यानी भगवान् की शरण में तुम्हारे सारे पापों की भी क्षमा है। यह बात भी इस सृष्टि के वैज्ञानिकों को स्वीकार नहीं हुई कि पाप करे कोई और उसकी क्षमा किसी दूसरे के द्वारा मिले। चूँकि इस दर्शन का भी कोई पुष्ट वैज्ञानिक आधार नहीं रहा, इसलिए यह भी सर्वमान्य न हो पाया।
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