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________________ २४० जागे सो महावीर कुंभकरण प्रतीक है सोने का। महावीर प्रतीक हैं जारूकता के। हम हर क्षण जागृत रहें ऐसे ही जैसे कि कोई भारण्ड पक्षी रहता है। भारण्ड पक्षी के दो मुँह होते हैं, जब एक मुँह नींद लेता है तो दूसरा जागृत रहता है और जब दूसरा मुँह सोता है तो पहला मुँह जागृत होकर रक्षा करता है। काल बड़ा निर्दयी होता है, वह किसी को लेने कोई मुहूर्त निकलवाकर नहीं आता। वह तो बिन मुहूर्त के डोली उठा ले जाता है। इसलिए व्यक्ति को हर पल, हर क्षण सतत आत्मजागृत रहकर साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रमाद न करे, आलस्य न खाए। भगवान कहते हैं, 'जो जागते हैं, उनकी बुद्धि बढ़ती है।' व्यक्ति को प्रमाद और आलस्य का त्याग कर सतत ज्ञानार्जन के लिए प्रयास करना चाहिए। जो निद्रालु और आलसी हैं वे कभी विद्या प्राप्त नहीं कर सकते। संस्कृत सूक्तियों में विद्यार्थी की चेष्टा और ध्यान कैसा हो? इसके लिएकहा गया है-'काकचेष्टा, बकोध्यानं' । एक विद्यार्थी की लगन या प्रवृत्ति कौए के समान हो और उसका ध्यान किसी बगुले की तरह हो। आपने कभी कौए को ध्यान से देखा है ? वह कितना सजग रहता है ! उसकी चोंच भले हीरोटी के टुकड़े पर हो पर उसकी आँखें दायीं-बायीं तरफ घूमकर खतरे से सदा सावधान रहती है। शयद ही किसी ने कौए को पत्थर से मारकर उड़ाया हो, क्योंकि वह इतना सजग रहना है कि आपका पत्थर उस पर लगे, उससे पहले ही वह उड़ जाता है। और एक विद्यार्थी का ध्यान बिल्कुल बगुले जैसा हो, जैसे कि बगुला एक पाँव ऊँचा खड़ा करके, आँखों को आधी मीचकर एक भक्त की तरह खड़ा रहता है, पर उसका सराध्यान मछलियों पर केन्द्रित रहता है। ज्ञानार्जन का इच्छुक व्यक्ति भी अपने लक्ष्य पर इसी तरह ध्यान केन्द्रित करके रहे। ध्यान रखो, अभ्यास से सब कुछ सधता है। रस्सी से पत्थर भी घिस जाता है और निर्बुद्धि भी विद्वान बन जाता है। बात करीब पच्चीस वर्ष पूर्व की है जब मैं अध्ययनरत था। सुबह चार बजे उठ जाया करते और रात को ग्यारह बजे तक पढ़ते रहते। उस समय पढ़ई सिर पर ऐसे ही सवार रहती, जैसे कि किसी के सिर पर भूत सवार होता है। रातको सोया हुआ था, सहचर ने जगाकर पूछा, 'गिलास कहाँ है?' कहते हैं मैंने नींद में ही जवाब दिया, रिपीडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स' में। साथी लोग चौंके और बोले, 'आप क्या कह रहे हैं?' मैं तो गिलास के बारे में पूछ रहा हूँ।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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