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________________ जागे सो महावीर २३९ संभव है कि उस फकीर ने महावीर के इस सूत्र को भलीभांति समझ लिया होगा कि धार्मिकों का जगना और अधार्मिकों का सोना ही श्रेयस्कर है।' आतताइयों के जगेरहने से राज्य और देश का अकल्याण और तबाही होगी। इसलिए हिटलर, चंगेज खाँ, तैमूर लंग, स्टेलिन और ऐसी ही क्रूर प्रवृत्ति के लोग सदैव सोए रहें तो ही श्रेष्ठ है। इनका जगना ही युद्धों एवं तबाही को निमंत्रण है। ये यदि जगे रहे तो इनके दिमाग में बस एक ही फितुर उठेगा कि कैसे किसको नष्ट किया जाए, कैसे किसको मिटाया जाए अथवा कैसे संसार को बरबाद किया जाए ? हर व्यक्ति अपने आप को तौल ले कि वह अपने अन्तरमन में कितना धार्मिक है और कितना अधार्मिक ? यदि आप रिश्वतखोर हैं, कालाबाजारी करते हैं, मिलावट करते हैं, कम नाप-तौल करते हैं, टैक्स की चोरी करते हैं, नकली इंजेक्शन और दवाइयाँ बेचते हैं तो मेरा आपसे निवेदन है कि यदि आप चार घण्टे सोते हैं तो आजसे आठ घण्टा सोया करें ताकि कुछ तो लोग हमारी अमानवीयता के शिकार होने से बचे रहेंगे। यदि आपधार्मिक हैं, आपके जीवन में नैतिकता और प्रामाणिकता है तो मैं आप से गुजारिश करूँगा कि आप यदि आठ घण्टे सोते हैं तो आज से आप पाँच घण्टा ही सोएँ, अपनी सेवाओं से सम्पूर्ण संसार को लाभान्वित करें, अपने आपको सम्पूर्ण विश्व में फैलाएँ। धार्मिक लोग जितना सोते हैं, उससे एक घंटा कम सोकर देखें, आप पाएँगे कि आपके धार्मिक जीवन में पाँच साल की बढ़ोतरी हो गई। जागरह नरा णिच्चं जागरमाणस्स वड्ढते बुद्धि। जो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सोसया धन्नो॥ भगवान कहते हैं-मनुष्यो ! सतत जागृत रहो। जो जागता है उसकी बुद्धि बढ़ती है जो सोता है वह धन्य नहीं है, जो सदा जागृत रहता है, वही धन्य है। भगवान ने कहा कि 'सदा आत्म-जागृत रहो।' क्योंकि पता नहीं कब कौनसा क्षण, मौत का क्षण बन कर आ जाए। व्यक्ति जब रात को सोता है तो आने वाले कल की प्रतीक्षा को लेकर सोता है। वह यह सोचता हुआ सोता है कि कल यह करना है, यह नहीं करना है, पर पता नहीं कल कब काल बन कर आ जाए। व्यक्ति की निद्रा कब चिरनिद्रा बन जाए, इसका कोई पता थोड़े ही है। जागे सो महावीर, सोए सो कुंभकरण ! जो जागृत हैं, वे महावीर हैं, जो मूर्च्छित हैं, सुषुप्त हैं, वे कुंभकरण हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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