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________________ धार्मिक जीवन के छह सोपान २१५ बाबा फरीद की बातों से वहाँ का बादशाह नाराज हो गया। उसने बाबा फरीद को मृत्युदंड की सजा सुनाई। सजा भी ऐसी कि भरी सभा में बाबा फरीद की चमड़ी को सिपाहियों द्वारा खींचा गया। जब बाबा के शरीर के नाम पर केवल माँस के लोथड़े रह गए तो उन्हें देश-निकाले की सजा सुनाई गई। बाबा फरीद उसी हालत में दरबार से बाहर निकले। चमड़ी उनके शरीर से ऐसे ही नोंच ली गई थी जैसे किसी मरे हुए बैल या बकरी की चमड़ी खींच-खींच कर उतारी जाती है। माँस के उन लोथड़ों में से खून रिस रहा था। उन्हें देखकर लोग भी ग्लानि से भर उठे, पर वे अब भी अपने खुदा की इबादत में लीन थे। बाबा फरीद चलते-चलते गाँव के बाहर आ पहुँचे जहाँ उनकी शिष्य-मंडली उपस्थित थी। जब शिष्यों ने बाबा फरीद की यह हालत देखी तो उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े। बाबा फरीद की हिम्मत अब चलने या बैठने की न रही। वेधड़ाम से जमीन पर गिर पड़े। माँस के लोथड़ों को देखकर कौए और गिद्ध उन पर टूट पड़े। दूर-दूर से कौओं के झुण्ड उन लोथड़ों को नोचने के लिए आने लगे। तब उस अंतिम घड़ी में आकाश की तरफ आँखें गड़ाते हुए बाबा फरीद के हृदय से जो दो पंक्तियाँ फूटीं, वे हमें आज भी अभिभूत कर देती हैं। उनके भावों की गहराइयों में खोते हुए, हमारी हृदय की आँखें गीली हो जाती हैं । उन्होंने कहा कागा सब तन खाइयो, चुन-चुन खाइयो मांस। दो नैना मत खाइयो, मोहे पिया मिलन की आस॥ ये पंक्तियाँ सुनने जैसी नहीं, हृदय में उतारने जैसी हैं। बाबा फरीद जब अपने शरीर के उन माँस के लोथड़ों को कौओं के द्वारा नोचते देखते हैं तो वे कहते हैं'अरे कौओ! तुम मेरा सारा तन, सारा माँस नोंच-नोंच कर खा लेना, पर तुमसे मेरी इल्तिजा है कि मेरी इन दो आँखों को मत खाना, क्योंकि ये अभी तक उस परमात्मा से, उस खुदा से मिलन की आस संजोए हैं।' ___ ऐसी गहरी प्रार्थना, स्तवना या संस्तुति कि जहाँ व्यक्ति अंतिम समय में भी अपने नेत्रों की रक्षा इसलिए चाहता है कि जब कभी उसका प्यारा परमात्मा साकार हो तो नयन उसके दर्शन कर सकें। भगवान कहते हैं कि ऐसे शुद्ध हृदय से वीतराग पुरुषों की, परमात्मा और भगवत् पुरुषों की भक्ति तीर्थंकर नामककर्म का बंध करती है। कितना सरल उपाय है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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