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जागे सो महावीर
कुछ समय पश्चात् उसी रास्ते से एक अन्य राहगीर गुजरा। उसने भी वृद्ध से यही प्रश्न किया। 'बाबा, मैं इस गाँव में कुछ दिन ठहरना चाहता हूँ। आप कृपया मुझे यह बताएँ कि यह गाँव और इस गाँव के लोग कैसे हैं ?' वृद्ध ने उससे भी पूछा, 'बेटा, मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूँ, उससे पहले तुम मुझे यह बताओ कि तुम किस गाँव से आए हो और वहाँ के लोग कैसे हैं ?' दूसरा राहगीर बोला, 'बाबा ! मैं जिस गाँव से आया हूँ, वह बड़ा ही साफ-सुथरा और सुन्दर है। वहाँ के सभी लोग बड़े समझदार, सत्यवादी और भाईचारे की भावना रखने वाले हैं। सब समय पर एक-दूसरे की मदद भी करते हैं।' वृद्ध बोला, 'यह गाँव भी बड़ा साफ और सुंदर है। इस गाँव के लोग भी बड़े सरल, विनीत, हृदयवान और मेल-मिलान की भावना रखने वाले हैं। भाई, तुम बिल्कुल सही जगह पर आए हो। तुम्हारा यहाँ स्वागत है।'
यह सुनकर राहगीर उस गाँव की दिशा में बढ़ गया। उस वृद्ध के पास एक अन्य व्यक्ति बैठा था। उसने वृद्ध के द्वारा दोनों ही राहगीरों को कही गई बातें सुनी थीं। वह उस वृद्ध से बोला, 'बाबा, मुझे आपकी बात समझ में नहीं आई कि आपने पहले व्यक्ति को तो कहा कि यह गाँव और उसके निवासी बड़े बुरे हैं
और दूसरे व्यक्ति को कहा कि गाँव भी बड़ा सुन्दर है और यहाँ के लोग भी बड़े अच्छे हैं।'
वृद्ध व्यक्ति बोला, 'इसके पीछे यह कारण है कि पहला व्यक्ति स्वयं ही बुरा था, तभी उसे अपने गाँव के लोग बुरे और अशिष्ट नजर आए और दूसरा व्यक्ति स्वयं अच्छा था इसलिए उसे दूसरों में भी गुण ही नजर आए। तुम यदि बुरी दृष्टि लेकर चलोगे तो तुम्हें हर जगह अवगुण और अवगुणी ही नजर आएँगे
और यदि तुम्हारी दृष्टि ही अच्छी है तो तुम बुरे लोगों के बीच रहकर भी उनमें कोई-न-कोई गुण खोज ही लोगे।' ____ मूल्य इस बात का है कि व्यक्ति किस दृष्टि से देखता है। यदि व्यक्ति मिथ्यात्वग्रसित दृष्टि से किसी धर्म के तत्त्व का भी आचरण करता है तो उसे उसका उल्टा ही परिणाम मिलेगा। यदि व्यक्ति सम्यक् दृष्टि से तत्त्व को जानता है तो यह उसकी कर्म-निर्जरा में सहायक बनेगा।
इसी संदर्भ में अगला सूत्र लेंमिच्छत्त-परिणदप्पा, तिव्व-कसाएण सुठ्ठ आविट्ठो। जीवं देहं एक्कं, मण्णंतो होदि बहिरप्पा॥
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