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मिथ्यात्व-मुक्ति का मार्ग
माता-पिता भी उसे कोई नेक सलाह दें तो वह भी उसे नहीं सुहाती। उसे मालूम है कि रसगुल्ला मीठा है, पर उसके बुखार के कारण उसे मीठा भी कड़वा लगता है। ऐसे ही जो व्यक्ति मिथ्यात्व के ज्वर से ग्रसित होता है, उसे पता है कि अधर्म उसके लिए हानिकारक है, पर वह अपने मिथ्यात्व के चलते उसे छोड़ नहीं पाता। आज हर व्यक्ति जानता है कि सिगरेट हानिकारक है, तंबाखू जानलेवा है, पर फिर भी वह उसका सेवन किए जा रहा है।
मेरी समझ से, दुनिया के पास ज्ञान की कमी नहीं है। ज्ञान इतना अधिक एकत्र हो गया है कि उसका अजीर्ण हो रहा है। यदि व्यक्ति को किसी बात का ज्ञान नहीं है तो वह है अपने अज्ञान का ज्ञान नहीं है। मैं यहाँ जो कुछ आपसे निवेदन कर रहा हूँ, उसका कारण यह नहीं कि मैं ज्ञानी हूँ और ज्ञान बाँट रहा हूँ। मैं, जो आपको यहाँ संबोधित कर रहा हूँ, उसके पीछे एक मात्र कारण अन्तर-बोध जगे, अन्तर-दृष्टि खुले। पथ पर चलना तो आपका काम है। मैं, किसी अंधे की हाथ की अंगुली को थामने वाला नहीं, वरन् उसकी आँख की रोशनी भर हूँ जो उसे पार लगा सके और उसे उसके किनारे पहँचा सके।
मूल्य है व्यक्ति की दृष्टि का। यदि व्यक्ति की मिथ्या दृष्टि, सम्यक् दृष्टि में तब्दील हो जाए तो वह सिनेमा हॉल में बैठकर भी कोई अच्छा चिंतन कर सकता है और यदि दृष्टि ही मिथ्या है तो मंदिर जाकर भी व्यक्ति किसी पाप का ही अनुबंध कर बैठेगा। सारा दारोमदार व्यक्ति के नजरिये पर है।
एक छोटी-सी घटना लें । एक व्यक्ति किसी गाँव की तरफ जा रहा था। रास्ते में ही उसे दूसरा व्यक्ति बैठा मिला। राहगीर ने उस वृद्ध व्यक्ति से पूछा, 'बाबा, मैं कुछ दिनों के लिए इस गाँव में रुकना चाहता हूँ । आप मुझे यह बताएँ कि यह गाँव और इस गाँव के लोग कैसे हैं ?' व्यक्ति बोला, 'इससे पहले कि मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूं, तुम मुझे यह बताओ कि तुम किस गाँव से आये हो
और तुम्हारे गाँव के लोग कैसे हैं ?' उस राहगीर ने कहा, 'बाबा, मैं जिस गाँव से आया हूँ, वहाँ के लोगों के बारे में न पूछे तो ही अच्छा। उस गाँव के लोग तो बड़े ही छली, कपटी, चोर और दगाबाज हैं। वे जरूरत पड़ने पर किसी के भी काम नहीं आते।' वृद्ध ने सुना और बोला, 'इस गाँव के लोग भी ऐसे ही हैं। ये भी बड़े छली, कपटी और दगाबाज हैं।' जब उस राहगीर ने यह सुना तो वह बोला, 'फिर तो मैं यहाँ नहीं रुक सकता। मुझे किसी अन्य गाँव की तलाश करनी पड़ेगी।' ऐसा कहकर वह आगे बढ़ गया।
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