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________________ २०० जागे सो महावीर सम्यक् प्रवृत्ति। विवेक और जतनपूर्वक कार्य करना ही समिति कहलाता है। गुप्ति का अर्थ है गोपन करना, नियंत्रण करना या निवृत्ति करना। भगवान एक तरफ सम्यक् प्रवृत्ति का मार्ग दिखलाते हैं तो दूसरी तरफ सम्यक् निवृत्ति की राह रोशन कर रहे हैं। विवेकपूर्वक कार्य किया जाए और फिर भी यदि कुछ अमर्यादित कृत्य हो जाए तो स्वयं पर नियंत्रण स्थापित कर लिया जाए। जैसे कोई व्यक्ति किसी को गाली न दे, लेकिन क्रोध या अन्य किसी कारणवश मुँह में गाली आ भी जाए तो 'नालायक' शब्द के निकलते ही व्यक्ति स्वयं को नियन्त्रण में ले आए। वह तुरन्त अपने ऊपर नियन्त्रण स्थापित कर ले और नालायक शब्द उच्चारित ही न हो पाए। गाली न बकना यह तो हुई समिति और गाली मुख पर आते ही उसे रोक देना, यह हुई गुप्ति। जैसे कोई कछुआ सामान्य रूप से तो अपने हाथ, पाँव, सिर आदि अंगों को बाहर निकाल कर चलता है लेकिन जैसे ही किसी गीदड़ का संकट उसके सामने आता है, वह तत्काल अपने सभी अवयवों को अपने भीतर समाहित कर लेता है, अपने अंगों को समेट लेता है। कछुए का अंगों को बाहर निकाल कर चलना यह तो हुई प्रवृत्ति और संकट या खतरा आते ही अंगों को अंदर कर लेना यह हुई गुप्ति । ___ पाँचों ही समितियों को हम संक्षेप में समझें। पहली समिति है ईर्या समिति अर्थात् गमनागमन में विवेक रखना। व्यक्ति विवेकपूर्वक चले, इसी का नाम है ईर्या समिति। आप यदि भली भाँति देखकर चलते हैं तो आप ऐसा करके भगवान द्वारा प्ररूपित धर्म के उत्कृष्ट रूप समिति' का पालन करते हैं। धर्म कितना सरल है, पर हमने धर्म कोआज कितना क्लिष्ट और कठिन बना दिया है। मैं यह कहना चाहूँगा कि धर्म का पालन करना उतना ही सरल और आसान है जितना कि दूध या पानी पीना अथवा आँखें होने पर किसी को देखना। जो जटिल और दुरूह हो जाए तो वह धर्म कहाँ और कैसे हो सकता है? ___ भगवान कहते हैं कि व्यक्ति विवेकपूर्वक चले। आप यदि देख कर चलते हैं तो पहला फायदा तो आपको यह होगा कि कोई काँटा आपके पाँव में न चुभेगा और न ही आपको काँटे चुभने का दर्द सहना होगा। यदि आप देख कर चलते हैं तो दूसरा फायदा आपको यह होगा कि आपको किसी ठोकर की पीड़ा नहीं सहन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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