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________________ जागे सो महावीर तब कहते हैं कि भवदेव पत्नी के ये वचन सुनकर वास्तविक संत बन गये । वे कहने लगे, 'नागिला, तुम धन्य हो । आज से तुम मेरी गुरु हो क्योंकि तुमने मुझ गिरते हुए को उठाया है ।' तब भवदेव जिस पगडंडी से आए थे, उसी पगडंडी की तरफ फिर मुड़ गये। जो पगडण्डी उनके पतन का कारण बनकर उन्हें नीचे धकेल रही थी, वही पगडंडी उनके उत्थान और कल्याण का आधार बन गई । १८८ नारी, तुम महान् हो जो गिरते हुए पुरुषों को ऊँचा उठाती हो। इस तरह नागिला के कारण भवदेव का वास्तविक ब्रह्मचर्य सधता है । सुधरना है पुरुषों को । हाँ, यदि महिलाओं में भी कुछ अंश तक खोट है तो वे भी सुधरें । सारा संसार सुधरे, हर व्यक्ति ब्रह्मरस में निमग्न हो, निर्मल दृष्टि, निर्मल जीवन और निर्मल चेतना का स्वामी बने । जैसे भगवान ने कभी चण्डप्रद्योत को पाँच व्रत प्रदान कर श्रावक जीवन दिया था और रानी मृगावती को श्रमणत्व का मार्ग प्रदान किया था, वैसा ही पुण्योदय हमारे जीवन में भी आए और ऐसा सूर्योदय हमारे जीवन में भी एक बार हो । Jain Education International For Personal & Private Use Only goo www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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